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________________ महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे सुद० --असंज०-तिएिणले-अब्भवसि०--मिच्छा-असण्णि-अणाहारग त्ति । णवरि ओरालियमि--कम्मइ०-अणाहार० देवगदि०४-तित्थय० आहारसरीरभंगो । सेसाणं णिरयादि याव सरिण त्ति ए संखेज्जजीविगा ए अ असंखेज्जजीविगा तेसिं जह० अज• उक्कस्सभंगो। __ एवं भागाभागं समत्तं । ४५२. परिमाणं दुवि०-जह० उक्क० । उक्कस्सए पगदं। दुवि०-ओघे० आदे० । अोघेण णिरयायु०--वेउवियछ० उक्क. अणु हिदिवंधगा केत्तिया ? असंखेज्जा । तिरिक्खायु० उ०ट्टि०७० केत्तिया ? संखेज्जा । अणु हिं०७० केत्तिया ? अणंता । मणुसायु-देवायु-तित्थय० उक-ट्टियं० केत्तिया ? संखेज्जा । अणुहि केत्ति ? असंखेंजा । आहा०२ -उक्क. अणु० हि०० केत्ति० ? संखेंजा । सेसाणं पगदीणं उ०हिबं० केत्ति० ? असंखेजा । अणुहि०व० केत्ति ? अणंता । एवं अोधभंगो तिरिक्खोघं कायजोगि--ओरालि-ओरालि मि.--कम्मइ०--णदुस---कोधादि०४-- मदि०-सुद--असंज०--अचक्खुदं०-तिएिणले- भवसि०--अब्भवसि०--मिच्छादि०-- आहार-अणाहारग त्ति । एवरि किरण. गील..तित्थय० उ. अणु० हि०७० तिर्यञ्चोंके समान एकेन्द्रिय, औदारिक मिश्रकाययोगो, कार्मण काययोगी, मत्यज्ञानी, श्रुताशानी, असंयत, तीन लेश्यावाले, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, असंज्ञी और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि औदारिक मिश्रकाययोगी, कार्मण काययोगी और अनाहारक जीवोंमें देवगतिचतुष्क और तीर्थकर प्रकृतिका भंग आहारक शरीरके समान है। शेष नरकगतिसे लेकर संज्ञीतक जितनी मार्गणाएँ हैं इनमें जो संख्यात जीवशधियाँ हैं और जी असंख्यातं जोव-राशियाँ हैं, उन सबमें जघन्य और श्रजघन्यका भंग इराष्पके समान है। इस प्रकार जघन्य भागाभाग समाप्त हुआ। इस प्रकार.भागाभाग समाप्त हुआ। ४५२. परिणाम दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । उसको अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। अोघसे नरकायु और वैक्रियिक छहको उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव कितने हैं ? असंख्यात है। तिर्यञ्चायुकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। मनुष्यायु, देवायु और तीर्थङ्कर प्रकृतिकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। आहारक द्विककी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात है। शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव कितने है ? असंख्यात है? अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव कितने हैं ? अनन्त हैं । इस प्रकार ओघके समान सामान्य तिर्यञ्च, काययोगी, औदारिक काययोगी, औदारिक मिश्रकाययोगो, कार्मण काययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताशानी, असंयत, अचक्षुदर्शनी, तीन लेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, आहारक और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि कृष्ण और नीललेश्यामें १. मूलप्रतौ णोल• श्रोरालिय तित्थय० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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