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________________ महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे ४०२. देवायु० ज० द्वि०वं० पंचरणा० चदुदंस० - सादावे ० चदुसंज० - पंचणोक ०देवरादि -- पत्थद्यावीस - उच्चा०--पंचंत० रिण० बं० संखेज्जगु० । तित्थय० सिया० संखेज्ज० । १८८ ४०३. कम्मइग० ओरालियमसभंगो। वरि तित्थय० ज० हि०वं मणुसगदिपंचगस्स सिया० संखेज्जगुः । देवगदि०४ सिया । तं तु पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभा० | ४०४. इत्थि० - पुरिस० अभिणिबोधि० ज० हि० बं० चदुणा० - चदुदंस०सादावे ० - चदुसंज० - पुरिस० - जस० उच्चा० पंचंत० णि० बं० जहण्णा० । एवमरणमरणारणं जहण्णा० । सेसा पगदीओ पंचिदियभंगो । C ४०५. एक्सगे खविगाओ इत्थिवेदभंगो । सेसा पगदी मूलोघं । ४०६ अवगदवे० आभिणिवोधि० ज० द्वि० बं० चदुरणा०-- चदुदंस ० -- सादा०जस०-उच्चा०-पंचंत० णि० वं० जहरणा० । एवगण मरणस्स जहएगा० । चदुसंज० मूलोघं । ४०२. देवायुकी जघन्य स्थितिका बन्धक जीव पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, सातावेदनीय, चार संज्वलन, पाँच नोकषाय, देवगति आदि प्रशस्त श्रट्ठाईस प्रकृतियाँ, उच्चगोत्र और पाँच अन्तराय इनका नियमसे बन्धक होता है जो नियमसे अजघन्य संख्यातगुणी अधिक स्थितिका बन्धक होता है। तीर्थंकर प्रकृतिका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् श्रबन्धक होता है । यदि बन्धक होता है तो नियमसे श्रजघन्य संख्यातगुणी अधिक स्थितिका बन्धक होता है । ४०३. कार्मण काययोगी जीवोंका भङ्ग श्रदारिक मिश्रकाययोगी जीवोंके समान है । इतनी विशेषता है कि तीर्थकर प्रकृतिकी जघन्य स्थितिका बन्धक जीव मनुष्यगति पञ्चकका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् ग्रबन्धक होता है । यदि बन्धक होता है तो नियमसे जघन्य संख्यातगुणी अधिक स्थितिका बन्धक होता है । देवगति चतुष्कका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् अवन्धक होता है । यदि बन्धक होता है, तो वह नियमसे अजघन्य पल्यका असंख्यातवाँ भाग अधिक स्थितिका बन्धक होता है । ४०४. स्त्रीवेद और पुरुषवेदवाले जीवों में ग्राभिनिबोधिक ज्ञानावरणकी जघन्य स्थितिका बन्धक जीव चार ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, साता वेदनीय, चार संज्वलन, पुरुषवेद, यशःकीर्ति, उच्चगोत्र और पाँच अन्तराय इनका नियमसे बन्धक होता है जो नियमसे जघन्य स्थितिका वन्धक होता है । इसी प्रकार इन सबका परस्पर सन्निकर्ष जानना चाहिए । किन्तु ऐसी अवस्था में वह नियमसे जघन्य स्थितिका बन्धक होता है । शेष प्रकृतियों का भङ्ग पञ्चेन्द्रियोंके समान है । ४०५. नपुंसक वेदवाले जीवों में क्षपक प्रकृतियोंका भङ्ग स्त्रीवेदके समान है । शेष प्रकृतियोंका भङ्ग मूलोघके समान है । ४०६. अपगतवेदवाले जीवोंमें आभिनिबोधिक ज्ञानावरणकी जघन्य स्थितिका बन्धक जीव चार ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, सातावेदनीय, यशःकीर्ति, उच्चगोत्र और पाँच अन्तराय इनका नियमसे बन्धक होता है जो नियमसे जघन्य स्थितिका बन्धक होता है । इसी प्रकार इन सब प्रकृतियोंका परस्पर सन्निकर्ष जानना चाहिए। किन्तु ऐसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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