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प्रशस्ति स्थितिबन्धके अन्तमें एक प्रशस्ति पाती है जो इस प्रकार हैयो दुर्जयस्मरमदोत्कटकुंभिकुंभ
संचोदनोत्सुकतरोग्रमृगाधिराजः । शल्यन्त्रयादपगतस्त्रयगारवारिः
संजातवान्स भुवने गुणभद्रसूरिः ॥ १॥ दुर्वारमारमदसिन्धुरसिन्धुरारिः
शल्यत्रयाधिकरिपुस्खयगुप्तियुक्तः । सिद्धान्तवाधिपरिवर्धनशीतरश्मिः
श्रीमाधनंदिमुनिपोऽजनि भूतलेऽस्मिन् ॥ २ ॥ वरसम्यक्त्वद देशसंयमद सम्यग्बोधदत्यन्तभा
सुरहारत्रिकसौख्यहेतुवेनिसिदादानदौदार्यदे- । लुतरदिंगीतने जन्मभूमियेनुतं सानंदविं कर्तुभू
भरमेलुं पोगलुत्तमिर्पदभिमानावीननं सेननं ॥३॥ सुजनते सत्यमोलपु गुणोचति पेंपु जैनमा
गंजगुणमेव सद्गुणविन्यधिक तनगोप्पनूलधमजनिवनेंदु कित्ते सुमदीधरे मेदिनिगोप्पितोब्बे चि
राजसमरूपनं नेगल्द सेनननुगुणप्रधाननं ॥४॥ अनुपमगुणगणदतिब
मन शीलनिदानमेसेक जिनपदसस्को । कनदशिलीमुखि येने मां
तनदिदं मल्लिकब्बे ललनारत्नं ॥ ५॥ जो दुर्जय स्मररूपी मदोन्मत हाथोके गण्डस्थलके विदारण करनेमें उत्सुक सिंहके समान हैं, जिन्होंने तीन शल्योको दूर कर दिया है और जो तीन गारवोंके शत्रु हैं वे गुणभद्रसूरि इस लोकमें प्रसिद्धिको प्राप्त हुए ॥१॥
जो दुर्वार माररूपी मदविह्वल हाथीके समान हैं तथा जो तीन शल्योंके लिए शत्रुके समान हैं, जो तीन गुप्तियोंके धारक हैं और जो सिद्धान्तरूपी समुद्रको वृद्धिके लिए चन्द्रमाके समान हैं वे श्रीमावनन्दि आचार्य इस भूतलपर हुए ॥ २॥
सच्चरित्र, संयमी, सम्यग्ज्ञानवान्, सबको सुख देनेवाले, दानी, उदार और अभिमानी सेनकी बहुत ही अानन्दसे सभी लोग प्रशंसा करते थे ॥ ३ ॥
सौजन्य, सत्य सद्गुणोंकी उन्नति और जैनमार्गमें रहना इन सद्गुणों से युक्त, स्मरके समान सुन्दर गुण प्रधान सेन नवीन धर्मात्मज कहलाता था ॥ ४ ॥
अनुपम गुणगणयुक्त, सुशील, जिनपदभक्त, स्त्रीरत्न मल्लिकव्वा उसकी पत्नी थीं ॥ ५ ॥
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