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________________ ३८ महाबंधे हिदिबंधाहियारे स परिवदमास्स अणियहिस्स से काले सवेदो होहिदि त्ति चरिमे उक्क० द्विदिबंधे वट्टमाणस्स | ५१. आभि० - सुद० - ओधि० सत्तरणं कम्मारणं उक्क० ट्ठिदि० कस्स ? अरण० चदुगदियस्स असंजदसं० मिच्छत्ताभिमुहस्स चरिमे उक्कस्सए द्विदिवधे वट्टमाणस्स । आयु० उक्क० द्विदि० कस्स ? पमचसंज० तप्पात्रोग्गविसुद्धस्स । एवं धिदं० सम्मादि० - वेदगसं० । मरणपज्जव० सत्तरगं कम्पायं उक्क० हिदि० पमत्तसंजदस्त तप्पा ओग्गसंकिलिट्ठस्स संजयाभिमुहस्स चरि उक् हिदि ० ० वट्टमा० । आयु० धिमंगो | एवं संजदा - सामाइ० - छेदोव० । णवरि मिच्छत्ताभिमुहस्स । ५२. परिहार • सत्तरणं कम्मारणं उक्क० हिदि० पमत्तसंजदस्स सामाइयच्छेदोवडावणाभिमुहस्स । आयु० पमत्तसंजदस्स तप्पाोग्गविसुद्धस्स । हुमसंप० इस प्रकार जो अन्तिम उत्कृष्ट स्थितिबन्धमें अवस्थित है, ऐसा अपगतवेदी जीव सात कर्मों के उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है । Q विशेषार्थ - नारकी नपुंसक होते हैं, अतः यहां स्त्रीवेद और पुरुषवेद में सात कर्मोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामित्व नरक गतिके सिवा अन्य तीन गतियोंके जीवोंके कहना चाहिए। नपुंसक वेद की अपेक्षा देवगतिके स्थान में नरकगतिका ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि देव नपुंसक नहीं होते । शेष कथन सुगम है । ५१. श्रभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें सात कर्मोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर चतुर्गतिका असंयतसम्यग्दृष्टि जीव मिथ्यात्वके अभिमुख है और अन्तिम उत्कृष्ट स्थितिबन्धमें विद्यमान है, वह सात कर्मोके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है । आयुकर्मके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्य विशुद्ध परिणामवाला प्रमत्तसंयत जीव आयुकर्मके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है । इसी प्रकार अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि और वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिए। मन:पर्ययज्ञानी जीवों में सात कर्मोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? जो प्रमत्तसंयत जीव तत्प्रायोग्य संक्लेशपरिणामवाला है, असंयम अभिमुख है और अन्तिम उत्कृष्ट स्थितिबन्धमें अवस्थित है, वह मन:पर्ययज्ञानी जीव सात कर्मोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है । आयुकर्मके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी अवधिज्ञानीके समान है। इसी प्रकार संयत, सामायिक संयत और छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयत जीवोंके कथन करना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इनमें मिथ्यात्व अभिमुख हुए जीवके सात कर्मोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामित्व कहना चाहिये । विशेषार्थ - सात कमका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संक्लेशपरिणाममें होता है, इसलिये उक्त मार्गणाओं में जिस मार्गणा से जहां के लिये पतन सम्भव है, उसके सन्मुख हुए जीवके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामित्व कहा है । पर इन मार्गणाओं में आयुकर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशुद्ध परिणामोंसे होता है, इसलिये उत्कृष्ट आयुबन्धके योग्य जहां विशुद्ध परिणाम सम्भव हैं, उसे ध्यान में रख कर सब मार्गणाओं में आयुकर्मके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कहा है । ५२. परिहारविशुद्धिसंयत जीवोंमें सात कर्मोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? जो प्रमत्तसंयत जीव सामायिक और छेदोपस्थापना संयम के श्रभिमुख है, वह परिहारविशुद्धि संयत सात कर्मोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है । आयुकर्मके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? जो प्रमत्तसंयत जीव तत्प्रायोग्य विशुद्ध परिणामवाला है, वह परिहारविशुद्धि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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