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________________ जागादिदिबंधअंतरमहालकत्रणा ४०७ तेजा०-क०-समबदु चराण - ४-गरम निकासा भगसुस्सर-आदे०-जस-अजस-णिमि०--पंत, जह० हिदि जह, अता, उक्क० असंखेज्जा लोगा। अज. जह० एग०, उक्क० अंतो०। थीणगिद्धितियं मिच्छन्तं अणंताणुबंधिचदुरकं जह० डिदि० णाणाव० भंगो । अज० जह० एग०, उक्क० तिषिण पलिदो० देस० । एवं इत्थिरे । अपच्चक्रवाणा ४-बुस-चदुजादिओरालि०-पंचसंठा--ओरालि अंगो-संघ-आदाव-अप्पसत्थ०-थावरादि०४भग-दुस्सर दे जह- हिदि गाणा : भंगो। अज• हिदि० जह० एग०, उकक पुत्रकोडी देर । तिरिण आव, जह० हिदि त्थि अंतर अज. जह० अंतो, उपक पुव्यकोडितिभागं देस तिरिकवायु, जह• हिदि० जह खुद्दा० समयू, उक्क० पलिदो० असं० । अन० जह, अंतो, उक्कल पुव्बकोडी सादि । वेउब्बियछ -मणुसग०-मणुसाणु • अोघं । उच्चा० मणुसाणु भंगो। तिरिक्वग०-तिरिक्रवाणु०-णीचागो-उज्जो जह० हिदि जह• अंतो०, उक्क० अणंतकालं । अन० जह• एग०, उक्क • पुन्धकोडी देसू० ।। संस्थान, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, त्रसचतुष्क, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, सुस्वर, प्रादेय, यश-कीर्ति, अयशाकीर्ति, निर्माण और पाँच अन्तराय प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है। अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चारके जघन्य स्थितिवन्ध ज्ञानावरणके समान है। अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य है। इसी प्रकार स्त्रीवेदके जघन्य और अजघन्य स्थितिबन्धका अन्तरकाल जानना चाहिए। अप्रत्याख्यानावरण चार, नपुंसकवेद, चार जाति, औदारिक शरीर, पाँच संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, आतप, अप्रशस्त विहायोगति, स्थावर आदि चार, दुर्भग, दुस्वर और अनादेय प्रकृतियोंके जघन्य स्थिति बन्धका अन्तर ज्ञानावरणके समान है। अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक पूर्वकोटि है। तीन आयुओंके जघन्य स्थितिबन्धका अन्तरकाल नहीं है। अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तमुहर्त है और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटिका कुछ कम तीसरा भाग है! तियेंञ्चायुके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय कम क्षुल्लकभवग्रहणप्रमाग है और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक एक पूर्वकोटि वर्षप्रमाण है। वैक्रियिक छह, मनुष्यगति और मनुष्यानुपूर्वीके जघन्य और अजघन्य स्थितिबन्धका अन्तर प्रोघके समान है। उच्चगोत्रके जघन्य और अजघन्य स्थितिबन्धका अन्तर मनुष्यानुपूर्वीके समान है । तिर्यञ्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी. नीचगोत्र और उद्योतके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तन प्रमाण है। अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक पूर्वकोटि है। विशेषार्थ-तिर्यञ्चोंमें बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकोंका उत्कृष्ट अन्तर काल असंख्यात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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