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________________ ४०२ महाबधे ट्ठिदिबंधाहियारे जह० हिदि० जह० खुद्दाभव० समयू०, उक्क. सागरोवमसहस्साणि सादि० । अज० जह० अंतो०, उक्क० सागरोवत्रसदपुधत्तं । मणुसायु० जह० हिदि. जह० खुद्दाभव० समयू०, उक्क० अगांतकालं० । अज० जह० अंतो०, उक्क० अणंतकालं। वेउवियछ० जह० हिदि० जह० अंतो०, उक्क० अणंतकालं० । अज० जह० एग०, उक्क० अणंतकालं० । तिरिक्वग०-तिरिक्वाणु०-उज्जो० जह० हिदि० जह० अंतो०, उक्क अणंतकालं० । अज० जह० एग०, उक्क० तेवहिसागरोवमसदं । मणुसग०-मणुसाणु जह• हिदि० जह• अंतो०, अज० जह• एग०, उक्क० दो वि असंखेज्जा लोगा। चदुजादि-आदाव-थावरादि०४ जह० जह० अंतो०, उक्क० असंखेज्जा लोगा । अज० जह० एग०, उक्क० पंचासीदिसागरोवमसदं। ओरालि०-ओरालि अंगो०-वजरिसभ० जह० हिदि० जह० अंतो०, उक्क० असंखेज्जा लोगा। अज० जह• एग०, उक्क० तिरिण पलिदो० सादि०। आहार०२ जह० हिदि० जह० रणत्थि अंतर। अज० हिदि. जह० अंतो०, उक्क• अद्धपोग्गलपरि । उच्चा० जह० हिदि० पत्थि अंतर । अज० ज० एग०, उक्क०. असंखेजा लोगा । एक समय कम तुल्लक भवग्रहणप्रमाण है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक दो हजार सागर है । अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर सौ सागर पृथक्त्व है। मनुष्यायुके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय कम क्षुल्लक भवग्रहण प्रमाण है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है। अजघन्य स्थितिवन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहर्त है। वैक्रियिक छहके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है । अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है। तिर्यञ्चगति, तिर्यश्वगत्यानुपूर्वी और उद्योतके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है। अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर एक सौ त्रेसठ सागर है । मनुष्यगति और मनुष्यगत्यानुपूर्वीके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तमुहर्त है। अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और दोनोंका ही उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोक प्रमाण है। चार जाति, आतप और स्थावर आदि चारके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है । अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर एक सौ पचासो सागर है । औदारिक शरीर, औदारिक आङ्गोपाल और वज्रर्षभनाराच संहननके जघन्य स्थितिबन्धकाजघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है । अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तीनपल्य है। आहारकद्विकके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर काल नहीं है। अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अर्धपुद्गल परिवर्तनप्रमाण है। उच्चगोत्रके जघन्य स्थितिबन्धका अन्तर काल नहीं है। अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्क्रष्ट अन्तर अस लोकप्रमाण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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