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________________ ३८० महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे २३३. वणप्फदि० एइंदियभंगो । णवरि तिरिक्खायु. उक्क० हिदि० जह दसवस्ससहस्साणि समयू०, उक्क० अणंतकालं अंगुल. असं० संखेज्जाणि वस्स सहस्साणि । अणु० पगदिअंतरं । मणुसायु० उक्क० णत्थि अंतर। अणुक्क. पगदि अंतर । णवरि मणुसगदितिगस्स अणु० पगदिअंतरं। बादरवणप्फदिपत्ते. बादरपुढविभंगो । एवरि तिरिक्वायु उक्क० हिदि० जह० दसवस्ससहस्साणि समयू० । णिगोदे. दणप्फदिभंगो । गवरि बादरणियोदेसु सव्वेसु उक्क डिदि० जह० अंतो०, उक्क० कम्महिदी. । अणु० जह० एगस., उक्क० अंतो । एंवरि तिरिक्खायु० उक्क हिदि. जह• अंतो० समयू०, उक्क० पलिदो. असं० । अणु० पगदिअंतरं । णिगोदेसु पलिदो० असंखे०, बादरणिगोदपज्जत्ते संखेन्जाणि वाससहस्साणि । सव्वमुहुमाणं सुहुमएइंदियभंगो । रणवरि अप्पप्पणो कायहिदी भाणिदव्वा । २३३. वनस्पतिकायिक जीवोंमें एकेन्द्रियोंके समान अन्तर काल है। इतनी विशेषता है कि तिर्यञ्चायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय कम दस हजार वर्ष है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल, अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण तथा संख्यात हजार वर्ष है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका अन्तर काल प्रकृतिबन्धके अन्तर कालके समान है। मनुष्यायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका अन्तर काल नहीं है । अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका अन्तरकाल प्रकृतिबन्धके अन्तरकालके समान है। इतनी विशेषता है कि मनुष्यगतित्रिकके अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका अन्तर काल प्रकृतिबन्धके अन्तर कालके समान है। बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर जीवोंमें बादर पृथिवीकायिक जीवोंके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि तिर्यञ्चायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय कम दस हजार वर्ष है। निगोद जीवों में वनस्पतिकायिक जीवोंके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि सब बादर निगोद जीवों में उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कर्मस्थितिप्रमाण है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। इतनी विशेषता है कि तिर्यञ्चायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय कम अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यात भागप्रमाण है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका अन्तर प्रकृतिबन्धके अन्तरके समान है। निगोद जीवोंमें पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है और बादर निगोद पर्याप्त जीवों में संख्यात हजार वर्ष है। सब सूक्ष्म जीवोंमें सूक्ष्म एकेन्द्रियोंके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि अपनी अपनी कायस्थिति कहनी चाहिए। विशेषार्थ-एकेन्द्रियोंकी उत्कृष्ट भवस्थिति बाईस हजार वर्ष है और वनस्पतिकायिक जीवोंकी उत्कृष्ट भवस्थिति दस हजार वर्ष है। तथा वनस्पतिकायिक जीवोंकी उत्कृष्ट कायस्थिति अनन्तकालप्रमाण, बादर वनस्पतिकायिकोंकी अङ्गुलके असंख्यातवें भागप्रमाण और बादर पर्याप्त वनस्पतिकायिकोंकी संख्यात हजार वर्षप्रमाण है । इसीसे यहाँ इनमें तिर्यञ्चायु के उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय कम दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट अन्तर वनस्पतिकायिकोंमें अनन्तकाल, इनके बादरोंमें अड्डुलके असंख्यातवें भागप्रमाण और इनके बादर पर्याप्तकोंमें संख्यात हजार वर्षप्रमाण कहा है। बादर वनस्पति प्रत्येक शरीर जीवोंकी उत्कृष्ट भवस्थिति भी दस हजार वर्ष है। इसीसे इनमें भी तिर्यश्चायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय कम दसह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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