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________________ उक्कस्सटिदिबंधअंतरकालपरूवणा ३६६ २२०. प्रादेसेण णेरइएसु पंचणा-छदंस०-सादासा०-बारसक-पुरिस०हस्स-रदि-अरदि-सोग-भय-दुगु-पंचिंदि--ओरालि०-तेजा-क-समचदु०-ओरालि. अंगो०-वजरिसभ०-वएण०४-अगुरु०४-पसत्थवि०-तस०४-थिराथिर-सुभासुभ-सुभगसुस्सर-आदे-जस-अजस०-णिमि०-पंचंत. उक्क० जह• अंतो०, उक्क० तेत्तीसं सा० देसू० । अणु० जह० एग०, उक्क० अंतो। थीणगिद्धि०३-मिच्छ०-अणंताणुबंधि०४-इत्थि०-णवुस-तिरिक्खगदि-पंचसंठा-पंचसंघ-तिरिक्रवाणु०-उज्जो०अप्पसत्थ-भग-दुस्सर-अणादे०-णीचागो० उक्क० जह० अंतो०, उक्क० तेत्तीसं सा० देमू० । अणु० जह० एग०, उक्क० तेत्तीसं सा देसू० । दो आयु० उक० णत्थि अंतरं । अणु० जह• अंतो, उक्क छम्मासं देमू । एवं सव्वणेरइयाणं आयु० । मणुसग०-मणुसाणु०-उच्चा० उक्क० जह० अंतो०, उक्क• बावीसं साग० देसू० । अणु० जह० एग०, उक्क० तेत्तीसं देसू० । तित्थय० उक्क० जह. अंतो०, उक्क० तिएिण साग० सादिरे० । अणु० जह• एग०, उक्क० अंतो० । २२१. एवं सु पुढवीसु । णवरि मणुसग०-मणुसाणु०-उच्चा० सादभंगो । ___२२०. आदेशसे नारकियों में पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, साता वेदनीय, असाता वेदनीय, बारह कषाय, पुरुषवेद, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, पञ्चेन्द्रिय जाति, औदारिक शरीर, तेजस शरीर, कार्मण शरीर, समचतुरस्र संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, वज्रर्षभनाराचसंहनन, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु चतुष्क, प्रशस्तविहायोगति, त्रस चतुष्क, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, सुस्वर, प्रादेय, यशःकीर्ति, अयश कीर्ति, निर्माण और पॉच अन्तराय प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी चार, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, तिर्यञ्चगति, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, उद्योत, अप्रशस्तविहायोगति, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय और नीचगोत्र प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है। अनुत्कृष्ट स्थितिवन्धका जघन्य अन्तर एक समय हैं और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है। दो आयुओंके उत्कृष्ट स्थितिवन्धका अन्तर काल नहीं है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम छह महीना है। इसी प्रकार सब नारकियोंके आयुकर्मके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल जानना चाहिए । मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम बाईस सागर है । अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है। तीर्थङ्कर प्रक्रतिके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तीन सागर है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। २२१. इसी प्रकार छह पृथिवियोंमें जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि इनमें मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रका भङ्ग साता प्रकृतिके समान है। ४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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