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________________ २५३ जहरण-अजहण्णबंधपरूषणा वा पोसव्वबंधो वा । सव्वाओ हिदीओ बंधमाणस्स सव्वबंधो। तदूर्ण बंधमाणस्स पोसव्वबंधो । एवं पगदीणं याव अणाहारगः त्ति णेदव्वं । उक्कस्सबंध-अणुक्कस्सबंधपरूवणा ६५. यो सो उक्कस्सबंधो अणुक्कस्सबंधो । तत्थ इमो दुवि० णिसो-ओघे० आदे० । ओघे० सव्वपगदीणं हिदिबंधो किं उक्कस्सबंधो अणुक्कस्सबंधो ? उक्कस्सबंधो वा अणुक्कस्सबंधो वा । सव्वुक्कस्सियं हिदि बंधमाणस्स उक्कस्सबंधो। तदणं बंधमाणस्स अणुकस्सबंधो । एवं याव अणाहारग त्ति णेदव्वं । जहएण-अजहरणबंधपरूवणा ६६. यो सो जहएणबंधो अजहएणवंधो णाम तस्स इमो दुवि० णिसोओघे० प्रादे । ओघे० सव्वपगदीणं हिदिबंधो किं जहएणबंधो अजहएणवंधो ? जहएणबंधो वा अजहणणवंधो वा । सव्वजहरिणयं द्विदिं बंधमाणस्स जहएणबंधो। तदो उवरि बंधमाणस्स अजहणणबंधो । एवं याव अणाहारग तिणेदव्वं । बन्ध होता है और नोसर्वबन्ध होता है। सब स्थितियोंका बन्ध करनेवाले जीवके सर्वबन्ध होता है और इनसे न्यून स्थितियोंका बन्ध करनेवाले जीवके नोसर्वबन्ध होता है। इसी प्रकार सब प्रकृतियोंका अनाहारक मार्गणा तक कथन करना चाहिए। उत्कृष्टबन्ध-अनुत्कृष्टवन्धप्ररूपणा ६५. जो उत्कृष्टवन्ध और अनुत्कृष्टवन्ध है,उसका यह निर्देश दो प्रकारका है-श्रोध और आदेश। भोघसे सब प्रकृतियोंका स्थितिबन्ध क्या उत्कृष्टबन्ध होता है या अनुत्कृष्टबन्ध होता है? उत्कृष्टबन्ध भी होता है और अनुत्कृष्टबन्ध भी होता है। सबसे उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवके उत्कृष्टबन्ध होता है और इससे न्यून स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवके अनुत्कृष्टबन्ध होता है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। विशेषार्थ-उत्कृष्टबन्धमें ओघ और आदेशसे सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका प्रहण किया गया है और अनुत्कृष्टबन्धमें उत्कृष्ट स्थितिबन्धके सिवा शेष सब स्थितिबन्धोंका ग्रहण किया गया है। उदाहरणार्थ श्रोघसे मिथ्यात्व मोहनीयका सत्तर कोडाकोड़ी सागर प्रमाण स्थितिबन्ध होने पर वह उत्कृष्ट स्थितिबन्ध कहा जाता है और इससे न्यून स्थितिबन्ध होने पर वह अनत्कृष्ट स्थितिबन्ध कहा जाता है। इसी प्रकार श्रादेशसे जिस मार्गणा में जो उत्कृष्ट स्थितिबन्ध हो,वह उत्कृष्ट स्थितिबन्ध है और शेष अनुत्कृष्ट स्थितिबन्ध है। जयन्यबन्ध--अजघन्यबन्धप्ररूपणा ६६. जो जघन्यबन्ध और अजघन्यबन्ध है,उसका यह निर्देश दो प्रकारका है-श्रोध और आदेश । ओघसे सव प्रकृतियोंका स्थितिबन्ध क्या जघन्यबन्ध है या अजघन्यबन्ध है ? जघन्यबन्ध भी है और अजधन्यबन्ध भी है। सबसे जघन्य स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवके जघन्यबन्ध होता है और इससे अधिक स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवके अजघन्यबन्ध होता है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। विशेषार्थ-उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धके समान यहाँ प्रोध और आदेशसे जघन्य और अजघन्य स्थितिबन्धका विचार कर लेना चाहिए । ओघसे सबसे जघन्म स्थिति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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