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महाबंधे हिदिबंधाहियारे अहमु० । अंतो• आबा । [आबापू० कम्महि० कम्मणि.]। सेसाणं जह• हिदि० सागरोवमस्स बे सत्तभागा पलिदो० असंखेजदिभागेण ऊणिया। अंतोमु० आबा० [आबाधू० कम्महि० कम्म०] ।
५०. आदेसेण गदियाणुवादेण णिरयगदीसु सव्वपगदीणं जह• हिदि० सागरोवमसहस्सस्स तिषिण सत्तभागा सत्त सत्तभागा चत्तारि सत्तभागाचे सत्तभागा पलिदोवमस्स संखेजदिभागेण ऊणिया । अंतोमु० आबा० । [आबाधू० कम्महि० कम्मणि.] । तिरिक्ख-मणुसायुगस्स जह• हिदिवं. अंतो० । अंतोमु. आबा । [कम्महिदी कम्मणिसेगो] | तित्थय० जह• हिदि० उकस्सभंगो । एवं पढमाए । विदियाए याव सत्तमा त्ति सव्वपगदीणं तित्थयरभंगो । णवरि आयु० णिरयभंगो ।
आठ मुहूर्त है। अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आबाधा है और आबाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है । शेष प्रकृतियोंका जघन्य स्थितिबन्ध एक सागरका पल्यका असंख्यातवाँभाग कम दो बटे सात भागप्रमाण है। अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आवाधा है और आबाधासे न्यून कर्म स्थितिप्रमाण कर्मनिषक है।
विशेषार्थ-यहाँ पर अन्तमें शेष पद द्वारा जिन प्रकृतियोंका संकेत किया है,वे ये हैंस्त्रीवेद, नपुंसकवेद, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, तिर्यश्च गति, मनुष्य गति, एकेन्द्रिय जाति, द्वीन्द्रिय जाति, त्रीन्द्रिय जाति, चतुरिन्द्रिय जाति, पञ्चेन्द्रिय जाति, औदारिक शरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, छह संस्थान, औदारिक शरीर आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, तिर्यञ्च गति प्रायोग्यानुपूर्वी, मनुष्यगति प्रायोग्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छास, आतप, उद्योत, प्रशस्तविहायोगति, अप्रशस्तविहायोगति, प्रस, स्थावर, बादर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक शरीर, साधारण शरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, दुर्भग, सुस्वर, दुःस्वर, आदेय, अनादेय, अयशःकीति, निर्माण और नीचगोत्र । इन प्रकृतियोंका स्थितिबन्ध एकेन्द्रियोंके भी होता है। इसलिए इनका जघन्य स्थितिबन्ध एक सागरका पल्यका असंख्यातवाँभाग कम दो बटे सात भागप्रमाण कहा है। यद्यपि इन प्रकृतियोंमें मोहनीय सम्बन्धी कुछ प्रकृतियाँ हैं, पर उनका भी बन्ध इसी अनु. पातसे होता है। इसलिए उनका यहाँ नाम निर्देश किया है। इस सब कथनका विशेष व्याख्यान जीवस्थान चूलिकामें किया है । इसलिए वहाँसे जानना चाहिए।
५०. श्रादेशसे गतिमार्गणाके अनुवादसे नरकगतिमें सब प्रकृतियोंका जघन्य स्थितिबन्ध एक हजार सागरका पल्यका संख्यातवाँभाग कम तीन बटे सात भाग, सात बटे सात, चार बटे सात भाग और दो बटे सात भाग प्रमाण है। अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आबाधा है और श्राबाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है । तिर्यञ्चायु और मनुष्यायुका जघन्य स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्त है । अन्तमुहर्तप्रमाण आबाधा है और कर्मस्थिति प्रमाण कर्मनिषेक है। तीर्थकर प्रकृतिका जघन्य स्थितिबन्ध उत्कृष्टके समान है। इसी प्रकार पहिली पृथ्वीमें जानना चाहिए । दूसरीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक सब पृथिवीयों में सब प्रकृतियोंका जघन्य स्थितिबन्ध तीर्थकर प्रकृतिके समान है । इतनी विशेषता है कि आयुकर्मका जघन्य स्थितिबन्ध सामान्य नारकियोंके समान है ।।
विशेषार्थ-नरकमें अर्थात् प्रथम नरकमें असंही जीव मरकर उत्पन्न हो सकता है। और ऐसे जीवके उत्पन्न होनेके प्रथम और द्वितीय समयमें सब प्रकृतियोंका असंहीके योग्य
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