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________________ महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे सुहुम-सव्वअपज्जत्ताणं च आयु० पंचिंदियतिरिक्ख'अपज्जत्तभंगो । सेसाणं आयु० अवत्त०-अप्प० जह० अंतो०, उक्क० बावीसं वस्ससहस्साणि सादि० बारसवस्साणि एगुणवएणरादिदियाणि छम्मासं सादि० बावीस वस्ससह [सत्त वस्ससह ०] तिएिण रादिदियाणि तिएिणवस्ससह दसवस्ससह. सादि। सव्वणियोद० जहएमुक्क० अंतो। २८७. पंचिंदिय-तस० तेसिं पज्जत्ता० सत्तएणं क. भुज०-अप्पद०-अवहि. ओघं । अवत्तव्य जह० अंतो०, उक० कायहिदी। आयु० अोघं । एवं चक्खु०सगिण त्ति । आहारगा० एवं चेव । णवरि सत्तएणं क० अवत्तव्व० उक्क अंगुलस्स असंखेज्जदिभागो असंखे० ओसप्पिणिउस्सप्पिणीयो । पंचिंदियअपज्जचा. पंचिंदियतिरिक्वअपज्जत्तभंगो । तसअपज्जत्तगे सत्तएणं कम्माणं भुज. अप्पद' जह एगस०, उक्क० अंतो० । अवहि० जह० ए०, उक्क० चत्तारि समयं । आयु. पंचिंदियअपज्जत्तभंगो। २८८. पंचमण-पंचवचि०-वेव्वियका-आहारका-आहारमि० सत्तर का भुज-अप्प -अवहि देवोघं । आयु० अप्प०-अवत्त० णत्थि अंतरं । वरि पंचमण-पंचवचि० अट्टएणं क० अवत्त० णत्थि अंतरं। कायजोगी सत्तएणं क. भुज०जीवोंमें आयुकर्मके पदोंका अन्तर पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्तौके समान हैं। शेष मार्गणाओं में आयुकर्मके प्रवक्तव्य और अल्पतर पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर क्रमसे साधिक बाईस हजार वर्ष, साधिक बारह वर्ष, साधिक उनचास दिन-रात, साधिक छह महीना, साधिक बाईस हजार वर्ष, साधिक सात हजार वर्ष, साधिक तीन दिन-रात, साधिक तीन हजार वर्ष और साधिक दश हजार वर्ष है। सब निगोद जीवोंमें आयुकर्मके सब पदोंका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। २८७. पञ्चेन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय पर्याप्त, त्रस और त्रसपर्याप्त जीवों में सात कोके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित बन्धका अन्तर ओघके समान है । अवक्तव्य बन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर अपनी अपनी कायस्थिति प्रमाण है। आयुकर्मका अन्तर ओघके समान है। इसी प्रकार चक्षुदर्शनी और संशी जीवोंके जानना चाहिए । आहारक जीवोंके भी इसी प्रकार जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि सात कर्मोंके प्रवक्तव्य बन्धका उत्कृष्ट अन्तर अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण है । जो असंख्यातासंख्यात उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी कालके बराबर है। पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंमें आठों कौके सम्भव पदोंका अन्तर पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंके समान है। त्रस अपर्याप्तकों में सात कमौके भुजगार और अल्पतर बन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थित बन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर चार समय है। आयुकर्मके पदोंका अन्तर पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्तकोंके समान है। २८८. पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचनयोगी, वैक्रियिक काययोगी, आहारककाययोगी, पाहारकमिश्रकाययोगी जीवोंमें सात कर्मोंके भुजगार अल्पतर और अवस्थित बन्धका अन्तर सामान्य देवोंके समान है। आयुकर्मके अल्पतर और प्रवक्तव्य पदका अन्तर नहीं है । इतनी विशेषता है कि पाँचों मनोयोगी और पाँचों वचनयोगी जीवोंमें आठों कमौके प्रवक्तव्य पदका अन्तर नहीं है। काययोगी जीवों में सात कौके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित १. मूलप्रतौ-तिरिक्खपज्जत्तभंगो इति पाठः । २. मूलप्रती अप्पद० जह० अप० जह० एगस. इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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