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________________ भूयो हिदिअप्पाबहुगपरूवणा १४३ सं०गु० । यहिदिवं० विसे । मणपज्ज०-सामाइ०-छेदो० तं चेव । णवरि आयु० जह हिदिवं. असं गु० । यहिदिबं० विसे । तस्सेव उक्क हिदिबं० सं०गु० । यहिदिवं० विसे । २६८. परिहार०-संजदासंजद० आहारकायजोगिभंगो। सुहुमसंप० सव्वत्थोवा णाणाव०-दसणाव-अंतराइ० जह हिदिवं.। यहिदिवं० विसे । णामा-गोदाणं जह हिदिव० संखेजगु० । यहिदिवं० विसे । वेदणी• जह हिदिवं. विसे । यहिदिबं० विसे । णाणाव-दसणाव-अंतराइ० उक्कदिदिबं० सं०गु० । यहिदिवं. विसे । णामा-गोद० उक्क हिदिबं० सं०गु० । यहिदिबं० विसे । वेदणी० उक्क०हिदिबं० विसे० । यहिदिबं० विसे । असंज० मदिभंगो। २६६. तेउ०-पम्म सव्वत्थोवा आयुग० जह हिदिवं । यहिदिवं० विसे । तस्सेव उक्क हिदिवं. असं गु० । यहिदिवं० विसे । णामागोदाणं जह हिदिवं. संगु० । यहिदिवं० विसे । णाणाव-दसणाव-वेदणी-अंतराइ० जहहिदिवं. विसे । यहिदिवं० विसे० । मोह० जहहिदिबं० विसे० । यहिदिवं० विसे० । णामा-गोदाणं उक्त हिदिबं० सं०गु । यहिदिवं० विसे । सेसाणं तीसिगाणं सामायिकसंयत और छेदोपस्थापना संयत जीवोंके यही अल्पबहुत्व है। इतनी विशेषता है कि इनके आयुकर्मका जघन्य स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे उसोका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। २६८. परिहारविशुद्धिसंयत और संयतासंयत जीवोंमें आहारक काययोगी जीवोंके समान अल्पबहुत्व है। सूक्ष्मसाम्परायिक संयत जीवोंमें शानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय कौका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे नाम और गोत्र कर्मका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे वेदनीय कर्मका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय कर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे नाम और गोत्र कर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे वेदनीय कर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। असंयतोंमें सब कौंका मत्यशानियोंके समान अल्पबहुत्व है। २६९. पीतलेश्या और पनलेश्यावाले जीवों में आयुकर्मका जघन्य स्थितिवन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे उसीका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे नाम और गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे नानापरण दर्शनावरण, वेदनीय और अन्तराय कर्मका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे मोहनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है । इससे नाम और गोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे शेष तीसियोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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