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________________ महाबंधे टिदिबंधाहियारे पंचवचि०-कायजोगि-ओरालियका-इत्थि०-पुरिस०-णवुस०-कोधादि०४-आमि०सुद-श्रोधि०-चक्खुदं०-अचक्खुदं०-श्रोधिदं०-सुक्कले -भवसि-सम्मादि०-खइगस०उवसम-सएिण-आहारग त्ति । २३८. आदेसेण णेरइएसु अट्ठएणं क. सव्वत्थोवा जहहिदिबंधो । यहिदिबंधो विसेसाहिो । उक्त हिदिव० संखे गु० । यहिदिबंधो विसेसाधियो । एवं सव्वणिरय-पंचिंदियतिरिक्खअपज्जा-मणुसअपज्जा-सव्वदेव-पंचिंदिय-तसअपज्ज-ओरालियमि०--वेन्धियमि-आहार-आहारमि०-कम्मइ०-सम्मामि०-- अणाहारग त्ति । २३६. तिरिक्खेमु सत्तएणं क. सबत्योवा जह हिदिबंधो। यहिदिबंधो विसे । उक्त हिदिव० सं०गु० । यहिदिवं. विसेसा०। आयु० जहहिदिवं० सव्वत्थोवा । यहिदिबंधो विसेसाधिो । उक्त ट्ठिदिवं. असंखेगु० । यहिदिबं. विसे । एवं तिरिक्खोघमंगो पंचिंदियतिरिक्ख०३-मदि०-सुद०-विभंग-असंज०किएण०-गील०-काउ०-तेउले०-पम्मले०-अब्भवसि०-सासण-मिच्छादिहि त्ति । २४०. एइंदिएसु सत्तएणं कम्माणं सव्वत्थोवा जहहिदिवं० । यढिदिवं. ...................................... मनोयोगी, पाँचों वचनयोगी, काययोगी, औदारिक काययोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, चक्षुदर्शनी, प्रचक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी, शुक्ललेश्यावाले, भव्य, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि, संक्षी और आहारक जीवोंके जानना चाहिए। २३८. आदेशसे नारकियोंमें आठों कौका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इसी प्रकार सब नारकी, पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्त, मनुष्य अपर्याप्त, सब देव, पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्त, त्रस अपर्याप्त, औदारिकमिश्रकाययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिए । विशेषार्थ-वैक्रिषिकमिश्रकाययोगी और सम्यग्मिथ्यादृष्टि इन दो मार्गणाओं में प्रायुकर्मका बन्ध नहीं होता, इसलिए इनमें सात कर्मोंकी अपेक्षा अल्पबहुत्व कहना चाहिए । २३९. तिर्यञ्चों में सात कर्मोंका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। आयुकर्मका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे उत्कृष्ट स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इसी प्रकार सामान्य तिर्यञ्चोंके समान पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चत्रिक, मत्यज्ञानी, श्रुताशाली, विमङ्गबानी, असंयत, कृष्णलेश्यावाले, नीललेश्यावाले, कापोतलेश्यावाले, पीतलेश्यावाले, पालेश्याषाले, प्रभव्य, सासादनसम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि जीबोंके जानना चाहिए । २४०. एकेन्द्रियों में सात कोका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यत्स्थितिबन्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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