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________________ उकस्स-फोसणपरूवणा १०७ आयु० ओघं । तेउ०-पम्म-मुक्कले सत्तएणं क० उक्क० अणु० अह-णवचोदस० अट्ठचोदस० छच्चोइस० । आयु० उक्क० खेत्त । अणु० अट्ठ अहचोदस० छच्चोइस० । १८२. सासण सत्तएणं क. उक्क० अणु० अट्ठ-बारह । आयु० उक्क० खेत्तभंगो । अणु० अहचोदसः । सम्मामि० सत्तएणं क. उक• अणु० अट्ठचोइस० । असएिण० खेत्तः । एवं उक्कस्सफोसणं समत्तं । राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आयुकर्मकी अपेक्षा स्पर्शन श्रोधके समान है। पीतलेश्यावाले, पद्मलेश्यावाले और शुक्ललेश्यावाले जीवों में सात कमौकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंने पीतलेश्याकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह राजू व कुछ कम नौ बटे चौदह राजू क्षेत्रका, पद्मलेश्याकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका और शुक्ललेश्याकी अपेक्षा कुछ कम छह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । आयुकर्मकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंने क्रमसे कुछ कम आठ बटे चौदह राजू, कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम छह बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। विशेषार्थ-पाँचवीं पृथिवी यहाँसे कुछ कम चार राज और तीसरी पृथिवी कुछ कम दो राजू है । इसी बातको ध्यानमें रखकर नील और कापोतलेश्यामें क्रमसे उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका कुछ कम चार राजू और कुछ कम दो राजू स्पर्शन कहा है। यह स्पर्शन मारणान्तिक समुद्धातकी अपेक्षा उपलब्ध होता है। शेष कथन स्पष्ट है । इतनी विशेपता है कि पीतलेश्यामें आयुकर्मकी अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू होता है। कारण कि मारणान्तिक समुद्धातके समय आयुबन्ध नहीं होता, इसलिए यहाँ कुछ कम नौ बटे चौदह राजू स्पर्शन उपलब्ध नहीं होता। १८२. सासादन सम्यग्दृष्टियों में सात कौकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजू क्षेत्र का स्पर्शन किया है। आयुकर्मकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्र का स्पर्शन किया है । सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों में सात कौकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । असंक्षियोंमें आठों कर्मोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। विशेषार्थ-सासादनमें विहारवत्स्वस्थान आदिकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और मारणान्तिक समुद्धातकी अपेक्षा कुछ बारह बटे चौदह राजू स्पर्शन होता है। आयुक बन्ध हात समय मारणान्तिक समुद्धात नहीं होता। इन बातोंको ध्यान रखकर सासादनमें उक्त स्पर्शन कहा है। शेष कथन स्पष्ट ही है। इस प्रकार उत्कृष्ट स्पर्शन समाप्त हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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