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महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे १०७. मदि०-सुद०-असंज-भवसि -अब्भवसि-मिच्छादि० मूलोघं । विभंगे सत्तएणं क० उक्क. जह० अंतो०, उक्क० तेत्तीसं साग० देसू० । अणु० अोघं । आयु० णिरयोघं । आभि-सुद० ओधि० सत्तएणं कम्मा० उक्क० पत्थि अंतरं । अणु० अोघं । आयु० उक्क० जह० पलिदो सादि०, उक्क० छावहिसाग० देस० । अणु० अोघं । एवं ओधिदं०-सम्मादि० । मणपज्जव० सत्तएणं क० उक्क पत्थि अंतरं । अणुक्क जहएणू० अंतो० । आयु० उक्क० एत्थि अंतरं। अणुक्क जह• अंतो०, उक्कस्सेण पुवकोडितिभागं देसू। एवं संजदाणं । सामाइ०-छेदो०-परिहार सत्तएणं क० उक० अणु० रणत्थि अंतरं । प्रायु मणपज्जवभंगो। एवं संजदासंजदा। प्रमाण कहा है । आयुकर्मके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर काल अोध प्ररूपणामें जिस प्रकार घटित करके बतला आये हैं, उस प्रकार यहाँ भी घटित कर लेना चाहिए। इतनी विशेषता है कि नपुंसकवेदकी अपेक्षा उत्कृष्ट नरकायुका और स्त्रीवेद तथा पुरुषवेदकी अपेक्षा उत्कृष्ट देवायुका बन्ध कराके यह अन्तर काल लाना चाहिए । स्त्रीवेदी जीवकी उत्कृष्ट भवस्थिति पचपन पल्यप्रमाण और पुरुषवेदी व नपुंसकवेदीकी उत्कृष्ट भवस्थिति तेतीस सागर प्रमाण होनेसे आयुकर्मके अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका उत्कृष्ट अन्तर स्त्रीवेदमें साधिक पचपन पल्य तथा पुरुषवेद और नपुंसकवेदमें साधिक तेतीस सागर कहा है। अपगतवेदमें सात कर्मोका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध उपशमश्रेणीसे उतरते समय होता है। तथा इसके बाद वह सवेदी हो जाता है। इससे अपगतवेदमें उत्कृष्ट स्थितिबन्धके अन्तरकालका निषेध किया है। तथा मरणके विना उपशान्त मोहका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्महर्त होनेसे अनत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त कहा है । शेष कथन सुगम है ।
१०७. मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, भव्य, अभव्य और मिथ्यादृष्टि जीवों में पाठों कर्मोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल मूलोधके समान है। विभङ्गज्ञानी जीवों में सात कमौके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर' है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल अोधके समान है। तथा आयुकर्मके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर सामान्य नारकियोंके समान है। आभिनिबोधिकहानी, श्रुतज्ञानी
और अवधिज्ञानी जीवों में सात कके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका अन्तर नहीं है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका अन्तर ओघके समान है। आयुकर्मके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर साधिक पल्यप्रमाण है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम छयासठ सागर है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका अन्तर ओघके समान है। इसी प्रकार अवधिदर्शनी और सम्यग्दृष्टि जीवोंमें जानना चाहिए । मनः पर्ययज्ञानी जीवों में सात कर्मोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका अन्तरकाल नहीं है। अनत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्महर्त है। आयकर्मक उत्कृष्ट स्थितिबन्धका अन्तर नहीं है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक पूर्वकोटिका त्रिभाग प्रमाण है। इसी प्रकार संयत जीवोंमें जानना चाहिये। सामायिक संयत छेदोपस्थापना संयत और परिहारविशुद्धि संयतों में सात कर्मोके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका अन्तरकाल नहीं है ।
१. मूलप्रतौ प्रायु० जह• उक्त जह० इति पाठः। २. ध० पु. ७,पृ० १६३ । ३. तत्त्वा०, ० ४ सू० ३३ । ४.ध.पु. ७,पृ० १८०।
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