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________________ उकस्सकालपरूवरणा एग०, उक्क अणंतकालमसंखे । आयु०मणजोगिभंगो । एवं णवुस-असगिण । आयु० अोघं । ओरालियकाजो० सत्तएणं क. उक्का ओघ । अणु० ज० एग०, उक्क० बावीसं वस्ससहस्साणि देसूणाणि। आयु मणजोगिभंगो। ओरालियमि०-वेउवियमि०-आहारमि० सत्तएणं कम्माणं उक्क० जह० एग०, उक्कस्सेण अंतोमुहत्तं । अणु० जहएणु० अंतो । ओरालियमि० आयु० ओघं । आहारमिस्से मणजोगिभंगो। कम्मइगका०-अणाहा. सत्तएणं कम्माणं उक्क जह• एग०, उक्क० बेसम । अणुक्क० जह एग०, उक. तिएिणसः । ७६. इत्थि-पुरिस सत्तएणं क० उक्क० ओघं । अणुक० जह० एगस०, उक्क० पलिदोवमसदपुधत्तं सागरोवमसदपुधत्तं । आयु० ओघं । अवगद० मणजोगिभंगो । एवं सुहुमसं० छएणं कम्माणं । समय है और उत्कृष्ट अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तन प्रमाण है। आयुकर्मका काल मनोयोगियोंके समान है। इसी प्रकार नपुंसकवेदी और असंही जीवोंके जानना चाहिए । इनके आयुकर्मका काल अोधके समान है । औदारिक काययोगी जीवोंमें सात कर्मौके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका काल ओघके समान है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम बाईस हजार वर्ष है। श्रायुकर्मका काल मनोयोगियोंके समान है । औदारिक मिश्रकाययोगी, क्रियिक मिश्रकाययोगी और आहारक मिश्रकाययोगी जीवोंमें सात कमौके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य काल एक. समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । औदारिक मिश्रमें आयुकर्मका काल श्रोधके समान है और आहारक मिश्रकाययोगमें आयुकर्मका काल मनोयोगियोंके समान है। कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवों में सात कौके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तीन समय है। विशेषार्थ-औदारिक मिश्रकाययोगमें आयुबन्ध लब्ध्यपर्याप्तकोंके ही होता है, इसलिए यहाँ आयुकर्मके अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका काल ओघके समान बन जाता है। शेष जिन योगोंमें आयुकर्मका बन्ध कहा है, उनका जघन्य काल एक समय होनेसे उनमें आयुकर्मके अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय कहा है। किन्तु आहारक मिश्रकाययोगमें। कुछ विशेषता है। उसका यद्यपि जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त होता है, तथापि वहाँ आयुकर्मके अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय कहनेका कारण यह है कि कोई जीव आहारक मिश्रकाययोगका एक समय काल शेष रहनेपर भी आयुकर्मका बन्ध कर सकता है, इसलिए यहाँ एक समय काल बन जाता है। कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवोंमें उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन होता है,इसका पहले विचार कर आये हैं । उसे देखते हुए शात होता है कि ऐसा जीव अधिकसे अधिक दो विग्रह लेकर ही उत्पन्न होता है। इसीसे यहाँ पर सात कौके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका उत्कृष्ट काल दो समय कहा है । शेष कथन सुगम है। ७६. स्त्रीवेद और पुरुषवेदमें सात काँके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका काल ओघके समान है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल क्रमसे पल्योपमशतपृथक्त्वप्रमाण और सागरोपमशतपृथक्त्वप्रमाण है। आयुकर्मका काल अोधके समान है। अपगतवेदियों में सात कौका काल मनोयोगियोंके समान है। इसी प्रकार सूक्ष्मसाम्परायमें छह कौंका काल होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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