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समर्पण
जिन्होंने समीचीन श्रद्धा, आत्म-विज्ञान और दुर्धर सकल संयम से समलंकृत हो, विषयासक्त विश्व को अपने विमल जीवन द्वारा आदर्श दिगम्बर श्रमण-चर्या का दर्शन कराया;
जिन्होंने अपने आत्मतेज और प्रशस्त अध्यवसाय द्वारा भव्यात्माओं के अन्तःकरण में रत्नत्रय की दिव्य ज्योति प्रदीप्त करते हुए उन्हें श्रेयोमार्ग में संलग्न कराया;
जिन्होंने परमपूज्य महाबन्धादि आगम ग्रन्थों के संरक्षण हेतु उन्हें ताम्रपत्र पर उत्कीर्ण कराया, जिनवाणी की चिरस्मरणीय सेवा की तथा जनसाधारण में सम्यग्ज्ञान के प्रसार हेतु उपयोगी ग्रन्थों को मुद्रित करवाकर अमूल्य वितरण कराया;
जिन्होंने अपने नेत्रों की ज्योति मन्द होने पर अहिंसा पहाव्रत के रक्षणार्थ वैयावृत्य रहित इंगिनीमरण रूप उच्च सल्लेखना को धारण कर इस दुषमा काल में ३६ दिवस पर्यन्त आहार त्यागकर परम शान्तिपूर्वक आदर्श समाधिमरण किया;
जिनकी उच्च तपः साधना तथा अपूर्व आत्मतेज से शरीर पर लिपटनेवाले भीषण सर्पराज भी बाधाकारी न हुए तथा व्याघ्र आदि क्रूर वन्य पशु जिनके पार्श्व में आकर प्रशान्त बने;
उन भयविमुक्त, आध्यात्मिक चूडामणि, चारित्र - चक्रवर्ती, साधुरत्न, १०८ आचार्य श्री शान्तिसागर महाराज की पावन स्मृति में -
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- सुमेरुचन्द्र दिवाकर
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