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पयडिबंधाहियारो
३८३ बेइंदियस्स उक्कस्सिया बंधगद्धा संखेजगुणा । एइंदियस्स उक्कस्सिया बंधगद्धा संखेज्जगुणा । पंचिंदियस्स उक्कस्सिया बंधगद्धा संखेज्जगुणा । एवं सण्णि-पजत्ता । दोणं सरीराणं जहण्णिगाओ बंधगद्धाओ सरिसाओ थोवाओ। सुहुम-अपजत्तस्स ओरालियसरीरस्स उक्कस्सिया बंधगद्धा संखेजगुणा। एवं याव पंचिंदिय-असण्णि-सण्णि-[] पज्जत्तगत्ति । तेसिं चेव पजत्तेसु ओरालियसरीरस्स उक्कस्सिया बंधगद्धा संखेजगुणा । वेउव्वियसरीरस्स उक्कस्सिया बंधगद्धा संखेजगुणा। एवं पंचिंदिय-सण्णि-पज्जत्तयस्स०। छस्संठाणं छस्संघडणं चदु-आणुपुन्वि-दो-विहायगदि-तसथावरादि०४-थिरादिछयुगलं सादासादाणं भंगो याव पंचिंदिय-असण्णि-सण्णि-पजत्तात्ति । णवरि पचिंदिय-असण्णिपज्जत्तस्स थावर० उक्कस्सिया बंधगद्धा संखेज्जगुणा। तसस्स उक्कस्सिया बंधगद्धा संखेज्जगुणा । एवं पंचिंदिय सण्णि-पञ्जत्तस्स । एवं बादर-सुहुम-पजत्तापजत्त-पत्तेयसाधारणं कादव्वं । दो-अंगोवंगाणं सरीर-भंगो । दो-गोदं वेदणीय-भंगो।
३५२. आदेसेण-णेरइएसु दोण्णं जीवसमासाणं दोण्णं पगदीणं जहणियाओ बंधगद्धाओ सरिसाओ थोवा । अपजत्तयस्स सादस्स उक्कस्सिया बंधगद्धा संखेजगुणा।
त्रीन्द्रियके बन्धकका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है। दोइन्द्रिय जातिके बन्धकका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है । एकेन्द्रिय जातिके बन्धकका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है। पंचेन्द्रिय जातिके बन्धकका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है । पंचेन्द्रिय-संज्ञो-पर्याप्तकमें-इसी प्रकार भंग है।
दोनों शरीरों-वैक्रियिक-औदारिक शरीरके बंधकोंका जघन्य काल समान रूपसे स्तोक है। सूक्ष्म-अपर्याप्तकमें-औदारिक शरीरके बन्धकका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है। पंचेन्द्रिय-असंज्ञी-संज्ञी [अ]पर्याप्तक पर्यन्त इसी प्रकार जानना चाहिए। इसके ही पर्याप्तकोंमें अर्थात् पंचेन्द्रिय असंज्ञी-पर्याप्तकोंमें औदारिक शरीरके बन्धकका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है । वैक्रियिक शरीरके बन्धकका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है। पंचेन्द्रिय-संज्ञी-पर्याप्तकोंमें भी इसी प्रकार जानना चाहिए।
६ संस्थान, ६ संहनन, ४ आनुपूर्वी, २ विहायोगति, त्रस तथा स्थावरादि ४, स्थिरादि ६ युगलोंके विषयमें पंचेन्द्रिय असंज्ञी-संज्ञी-पर्याप्तक पर्यन्त साता, असाताके समान भंग जानना चाहिए। विशेष, पंचेन्द्रिय-असंज्ञी-पर्याप्तकमें स्थावर प्रकृतिके बन्धकका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है। ब्रसके बन्धकका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है । इसी प्रकार पंचेन्द्रिय-संझी. पर्याप्तकमें भी जानना चाहिए। बादर-सूक्ष्म-पर्याप्त-अपर्याप्त प्रत्येक-साधारणमें भी इसी प्रकार जानना चाहिए। अर्थात् जिस प्रकार स्थावर तथा त्रसके बन्धकोंका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा कहा है, उसी प्रकार यहाँ भी बादर, सूक्ष्मादिके बन्धकोंमें जानना चाहिए। दो अंगोपांग अर्थात् औदारिक-वैक्रियिक अंगोपांगके बन्धकोंमें शरीरके समान भंग जानना चाहिए अर्थात् औदारिक, वैक्रियिक शरीरके बन्धकोंके समान इनके भंग हैं। नीच, उच्च गोत्रके बन्धकोंमें वेदनीयके सदृश भंग है।
३५२. आदेशसे-नारकियोंमें - पर्याप्तक, अपर्याप्तक रूप दो जीव समासोंमें साताअसाता इन दो प्रकृतियों का जघन्य बन्धकाल समान रूपसे स्त्रोक है। अपर्याप्तक.नारकीमें
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