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________________ ३५० महाबंधे असंखे० । ओरालि० बंध० जीवा संखेजः । तेजाक० बंधगा जीवा विसेसा० । तिण्णं अंगो० एवं चेव । णवरि तिण्णं अंगो० बंधगा जीवा विसे। अबं० जीवा संखेज। एवं पम्माए। णवरि थोवा इथिवेदाणं बंध० जीवा । णवुस० बंधगा जीवा संखेज। हस्सरदि-बंधगा जीवा असंखेज० । अरदिसोग-बंधगा जीवा संखेजः । पुरिस० बंधगा जीवा विसेसा० । भयदु० बंधगा जीवा विसेसा० । मणुसायु-बंधगा जीवा थोवा । तिरिक्खायु-बंधगा जीवा असंखेज० । देवायु-बंधगा जीवा विसे० । तिण्णं बंधगा जीवा विसे० । अबंधगा जीवा असंखेज० । मणुसगदि-बंधगा जीवा थोवा । तिरिक्खगदिबंधगा.जीवा संखेज० । देवगदि-बंधगा जोवा असंखेजः । तिण्णं बंधगा जोवा विसे । एवं आणुपुवि० । सव्वत्थोवा आहारस० बंधगा जीवा। ओरालि० बंधगा जीवा असंखेज० । वेउब्धि० बंधगा जीवा असंखेज्जः। तेजाक० बंधगा जीवा विसे० । एवं अंगो० । सव्वत्थोवा णग्गोदपरि० बंधगा जीवा । सादियसं० बंधगा जीवा संखेज० । खुजसं० बंधगा जीवा संखेज्ज । वामणसं० बंधगा जीवा संखेज० । समाधान-सौधर्म,ईशान स्वर्ग तक के देव तेजोलेश्याधारी होते हुए विकलत्रयमें जन्म न ले, एकेन्द्रिय पर्याय प्राप्त करते हैं, इस कारण यहाँ एकेन्द्रियके बन्धक कहे गये हैं। ऐसी आगमकी आज्ञा है। आहारक शरीरके बन्धक जीव स्तोक हैं। वैक्रियिक शरीरके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। औदारिक शरीर के बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । तैजस, कार्मणके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। तीनों अंगोपांगमें ऐसा ही है, किन्तु तीनों अंगोपांगके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। अबन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। पद्मलेश्यामें इसी प्रकार जानना चाहिए । यहाँ इतना विशेष है, स्त्रीवेदके बन्धक जीव स्तोक हैं। नपुंसकवेदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। हास्य-रतिके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । अरति-शोकके बन्धक जाव संख्यात पुणे हैं । पुरुषवेदके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। भय-जुगुप्साके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। मनुष्यायुके बन्धक जीव स्तोक हैं । तियंचायुके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । देवायु: के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। तीनोंके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। अबन्धक जीव असं. ख्यातगुणे हैं। __ मनुष्यगतिके बन्धक जीव स्तोक हैं । तियं चगति के बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। देव. गतिके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । तीनोंके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। इसी प्रकार आनुपूर्वी में भी समझना चाहिए। आहारक शरीरके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । औदारिक शरीरके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। वैक्रियिक शरीरके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। तैजस, कार्मण के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। इसी प्रकार अंगोपांगमें भी समझना चाहिए । न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थानके बन्धक जीव सबसे कम हैं। स्वातिकसंस्थानके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । कुब्जकसंस्थानके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। वामनसंस्थानके बन्धक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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