SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 459
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाबंधे ३३४ बंधगा जीवा विसेसा० । भयदु० बंध. जीवा विसेसा० । मणुसायुबंध० जीवा थोवा। अबंधगा जीवा असंखेजः । णग्गोद० बंध० जीवा थोवा । सादिय० बंध० जीवा संखेजगु० । खुज० बंध० जीवा संखेज० । वामण० बंध० जीवा संखेजगु० । हुंडसं० बंध. जीवा संखेज० । समचदु० बंध० जीवा संखेज० । संघडणं संठाणभंगो । अप्पसत्थवि० भग-दुस्सर-अणादेज-णीचागोदाणं बंधगा जीवा थोवा । तप्पडिपक्खाणं बंधगा जीवा संखेज० । सेसाणं युगलाणं णिरयभंगो। तित्थयरं बंधगा जीवा थोवा । अबंधगा जीवा संखेज्ज० । अणुदिस याव सव्वट्ठ ति सव्वत्थोवा हस्सरदि बंध० जीवा । अरदिसोग-बंध० जीवा संखेज्ज० । पुरिसवे० भयदु० बंध० जीवा विसेसा० । सेसाणं युगलाणं गिरयभंगो । आयु० तित्थय० आणदभंगो । णवरि सव? आयु० बंधगा जीवा थोवा । अबंध० जीवा संखेज्ज। ३०६. पंचिंदियेसु-पंचणा० सव्वत्थोवा अबंध० जीवा। बंधगा जीवा असंजीव संख्यातगुणे हैं। पुरुषवेद के बन्धक विशेष अधिक हैं। भय, जुगुप्साके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। मनुष्यायुके बन्धक जीव स्तोक हैं। अबन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। विशेष-आनतादि स्वर्गों में एक मनुष्यायका ही बन्ध होता है। न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थानके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। स्वाति संस्थानके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । कुरुजकके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । वामनके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। हुण्डक संस्थानके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। समचतुरस्र संस्थानकें बन्धक जीव संख्यातगुगे हैं। - संहननोंमें संस्थानके समान भंग है । अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय तथा नीचगोत्रके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। इनकी प्रतिपक्षी प्रकृतियाँ अर्थात् सुभग, सुस्वर, आदेय तथा उच्चगोत्रके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । शेष युगलों के विषयमें नरक गतिके समान भंग हैं। तीर्थकर प्रकृति के बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । अबन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धिमें - हास्य रतिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । अरतिशोकके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। पुरुषवेद तथा भय-जुगुप्साके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं । शेष युगलोंमें नरक गति के समान भंग हैं । . आयु तथा तीर्थकरके बन्धकोंमें आनत के समान भंग हैं। विशेष, सर्वार्थसिद्धिमें आयुके बन्धक सर्व स्तोक हैं । अबन्धक जीव संख्यातगणे हैं। विशेषार्थ-सर्वार्थसिद्धिके देवोंकी संख्या संख्यात होनेसे यहाँ 'असंख्यात'का उल्लेख नहीं किया गया है। जीवट्ठाणमें उनका प्रमाण मनुष्यनीके प्रमाणसे तिगुना कहा है, 'मणुसिणिरासीदो तिउणमेत्ता हवंति' (ताम्रपत्र प्रति पृ० २८६ )। ___३०६. पंचेन्द्रियोंमें - ५ ज्ञानावरणके अबन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। बन्धक जीव १. “सन्चट्ठसिद्धिविमाणवासियदेवा दव्वपमाणेण केवडिया ? संखेज्जा।" - जीव० ताम्रपत्र प्रति पृ०२८६। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy