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________________ ३२६ पयडिबंधाहियारो ३०५. पंचिंदिय-तिरिक्ख-अपजत्तगेसु-सव्वत्थोवा पुरिसवेदबंधगा जीवा । इत्थिवेदबंधगा जीवा संखेजगुणा । हस्सरदिबंधगा जीवा संखेज्जगुणा । अरदिसोगबंधगा जीवा संखेज्जगुणा। णवूस० बंधगा जीवा विसेसा० । भयदु० बंधगा जीवा विसेसा० । सव्वत्थोवा मणुसायु-बंधगा जीवा । तिरिक्खायुबंधगा जीवा असंखेजगुणा । दोणं बंधगा जीवा विसेसा० । अबंधगा जीवा संखेजगुणा। सव्वत्थोवा मणुसगदिबंधगा जीवा । तिरिक्खगदिबंधगा जीवा संखेजगुणा। दोणं बंधगा जीवा विसेसा० । अबंधगा पत्थि । सव्वत्थोवा) पंचिंदिय-बंधगा जीवा० । चदुरिंदिय-बंधगा जीवा संखेजगुणा । तीइंदिय-बंधगा जीवा संखेज० । बीइंदि० बंधगा जीवा संखेज० । एइंदियबंधगा जीवा संखेजगुणा । सव्वत्थोवा ओरालिय-अंगो० आदा-उजो० बंध० जीवा । अवंधगा जीवा संखेज० । संठाण-संघडण० पर० उस्सा० दो विहा० तसथावरादि-दसयुगलं दोगोदं च पंचिंदिय-तिरिक्खभंगो। एवं सव्व-अपजत्तगाणं तसाणं सत्रएइंदिय-विगलिंदिय-सव्वपंचकायाणं च । णवरि वणप्फदि काय-णिगोदेसु सवत्थोवा मणुसायु-बंधगा जीवा । तिरिक्खायुबंधगा जीवा अणंतगणा। दोणं बंधगा जीवा विसे० । अबंधगा जीवा संखेज० । ३०६. मणुसेसु-सव्वत्थोवा पंचणा० अबंधगा जीवा, बंधगा जीवा असंखेज ३०५. पंचेन्द्रिय तियं च लब्ध्यपर्याप्तकोंमें - पुरुषवेदके बन्धक जीव सर्व स्तोक हैं। स्त्रीवेदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। हास्य, रतिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। अरति, शोकके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । नपुंसकवेदके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। भय, जुगुप्साके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। . ___ मनुष्यायुके बन्धक जीव सर्व स्तोक हैं। तियं चायुके, बन्धक जीव असंख्यात गुणे हैं। दोनोंके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं । अबन्धक संख्यातगुणे हैं। मनुष्यगति के बन्धक जीव सर्व स्तोक हैं। तियंचगतिके बन्धक संख्यातगुणे हैं। दोनोंके बन्धक विशेषाधिक हैं; अबन्धक नहीं हैं। पंचेन्द्रिय जातिके बन्धक जीव सर्व स्तोक हैं। चौइन्द्रिय जातिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। त्रीन्द्रिय जातिके बन्धक संख्यातगुणे हैं। दोइन्द्रिय जातिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । एकेन्द्रिय जातिके बन्धक जीव संख्यातगणे हैं। औदारिक अंगोपांग, आतप. उद्योतके बन्धक जीव सर्व स्तोक हैं। अबन्धक जीव संख्यातणे हैं । संस्थान, संहनन, परघात, उच्छ्वास, दो विहायोगति, बस-स्थावरादि दस युगल तथा दो गोत्रोंके बन्धकोंमें पंचेन्द्रिय तिर्यचके समान भंग जानना चाहिए। . इसी प्रकार सर्व लब्ध्यपर्याप्तक त्रसों, सर्व एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय और सर्व पंचकायवालोंमें है । विशेष यह है, कि वनस्पति काय-निगोदियों में मनुष्यायुके बन्धक जीव सर्व स्तोक हैं। तियेचायुके बन्धक जीव अनन्तगुणे हैं । दोनों के बन्धक जीव विशेष अधिक हैं। दोनोंके अबन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। ३०६. मनुष्योंमें - ५ ज्ञानावरणके अबन्धक जीव सर्व स्तोक हैं। बन्धक जीव असं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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