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________________ प्रास्ताविक ११ णिबद्ध का अर्थ स्वरचित है, जिसे दिवाकरजी ने स्वयं अपनी भूमिका में स्वीकार किया है। यथा-"अर्थात् सूत्र के आदि में सूत्र रचयिता के द्वारा रचित देवता नमस्कार निबद्ध मंगल है।" 'महाधवल' सिद्धान्त नाम से प्रसिद्ध शास्त्र यथार्थतः 'षट्खण्डागम' का ही 'महाबन्ध' नामक छठा खण्ड है, जैसा कि मैं उसके प्रथम भाग की भूमिका में बतला चुका हूँ। वहाँ मैं इस ग्रन्थ के कर्ताओं व समय आदि के सम्बन्ध का भी विचार कर चुका हूँ। तब से अभी तक कोई ऐसी नवीन सामग्री प्रकाश में नहीं आयी, जिसके कारण मुझे अपने उस मत में परिवर्तन करने की आवश्यकता प्रतीत हो। यद्यपि 'महाबन्ध' 'षट्खण्डागम' का ही एक अंश है और उन्हीं भूतबलि आचार्य की रचना है जिन्होंने पूर्व पाँच खण्डों के बहुभाग की रचना की है, यहाँ तक कि उसका मंगलाचरण भी पृथक् न होकर चतुर्थ खण्ड वेदना के आदि में उपलब्ध मंगलाचरण से ही सम्बद्ध है, तथापि यह रचना एक स्वतन्त्र ग्रन्थ के रूप में उपलब्ध होती है। इसके मुख्यतः दो कारण हैं-एक तो यह ग्रन्थ पूर्व पाँचों भागों को मिलाकर भी उनसे बहुत अधिक विशाल है, और दूसरे उस पर धवलाकार वीरसेनाचार्य की टीका नहीं है, क्योंकि उन्होंने इतनी सुविस्तृत रचना पर टीका लिखने की आवश्यकता ही नहीं समझी। इस ग्रन्थ का विषय शास्त्रीय है जिसमें केवल जैनदर्शन के उन्हीं मर्मज्ञों की रुचि हो सकती है जिन्हें कर्मसिद्धान्त सम्बन्धी सूक्ष्मतम व्यवस्थाओं की जिज्ञासा हो। ज्ञानपीठ मूर्तिदेवी जैन ग्रन्थमाला के प्राकृत विभाग के सम्पादक और नियामक के नाते मैं इस अवसर पर श्रीमान् साहु शान्तिप्रसादजी जैन का अभिनन्दन करता हूँ और उन्हें धन्यवाद देता हूँ कि उन्होंने भारतीय ज्ञानपीठ-जैसी संस्था स्थापित की व भारतीय संस्कृति की छिपी हुई निधियों का संसार को परिचय कराने के हेतु अपनी गातृश्री की स्मृति में यह मूर्तिदेवी जैन ग्रन्थमाला प्रारम्भ करायी। मुझे आशा और विश्वास है कि उनकी धर्मपत्नी तथा ज्ञानपीठ की संचालक समिति की अध्यक्ष श्रीमती रमारानीजी की रुचि तथा संस्था के संचालक न्यायाचार्य पं. महेन्द्रकुमारजी शास्त्री के परिश्रम, अभियोग और उत्साह से संस्था का कार्य उत्तरोत्तर गतिशील होगा। मेरी सब विद्वानों से प्रार्थना है कि वे संस्था के उद्देश्य की पूर्ति में सहयोग प्रदान करें। मारिस कॉलेज, नागपुर, १५-४-४७ हीरालाल जैन ग्रन्थमाला सम्पादक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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