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[ ८६ ]
स्वर्ग और नरक
सदाचार है स्वर्ग पुण्य कीज्योति सजा जलती रहती है ? मंगलमय सुख, शान्ति, शान्ति, प्रेम की, सृष्टि नित्य नूतन रहती है ॥
कदाचार है नरक, पाप की कीघोर निशा छायी रहती है । उत्पीड़न की,
रोग, शोक, भय,
हाय - हाय हर क्षण
रहती है ।।
जैसे को तैसा
यह भी अच्छा, वह भी अच्छा, अच्छा - अच्छा सब मिल जाए । हर मानब की यही किन्तु प्राप्ति का मर्म न पाए ।
तमन्ना,
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अच्छा पाना है, तो पहले, खुद को अच्छा क्यों न बना लें ? जो जैसा है, उसको है, उसको वैसामिलता, यह निज मंत्र बना लें ||
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