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[ ६३ ] विद्या की आवश्यकता चाल कौन कहता है कि मैं, तेरे खरीदारो में हूं। कौन कहता है कि विद्या लाभ पहुचाती नहीं ।
वक्त आने पर कभी क्या काम यह आती नहीं ॥ ध्र. १ ज्ञान ही का फर्क है इन्सान और हैवान में।
है पशु वे भी वशर विद्या जिन्हें भाती नहीं। २ दूर देशों में जहाँ कोई न अपनी जान का, . क्या सुविधा उस जगह सत्कार करवाती नहीं। ३ मूर्ख को मैने कहीं पर भी कदर देखी नहीं।
जगमगाती रत्न ज्योति कांच में पाती नहीं। ४ प्रेम भाव प्रसारिणी वर वस्तु इस संसार में,
कोई विद्या के सिवा हमको नजर आती नहीं। ५ खून पसीना एक कर चाहे अमर जाकर कहीं।
किन्तु विद्या बिन कभी यह दीनता जाती नहीं।
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