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[ ३० ] बूढ. बैल की पकार
हा घटाएँ गम की छाई आज दिन दुष्ट मालिक ! क्या समाया आज दिन
क्यों अकारण मुह चढ़ाया आज दिन ।।टे. १ कड़ कड़ाती धूप में हल में चला,
रक्त तेरे हित सुखाया आज दिन । २ गाड़ियाँ ढो - ढोके कूड़े खाद की,
अस्थि - पंजर आज तन बनाया आज दिन । ३ रात दिन वह बहके पालाथा कुटुम्ब,
हां ! वो सब अहसां भुलाया आज दिन । ४ घास दाना तो चलो कूए पडो,
वक्त पर पानी न पाया आज दिन । ५ कुरडियों पर चावता चिपड़े फिरू,
पेट जालिम ने सताया आज दिन । ६ थी गनीमत इसमें भी लेकिन अहाँ,
क्यों कसाइ ला विठाया आज' दिन ७ बूढ़े होने की सजा, तो क्या कभी,
बाप अपना था विकाया आज दिन ।
तुम किसानों की भलाई कैसे हो । ८ वैल पर खंजर चलाया आज दिन ॥
श्रेष्ट धन वैल भारत का अमर । है लोभ के पर चल गंवाया आज दिन ।।
॥ इति ।।
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