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( iv )
स्तोत्र-साहित्य में सर्वप्रथम स्तोत्र/स्तुति की रचना पंचम गणधर सुधर्मा स्वामी ने की है जो वीरस्तुति के नाम से प्रसिद्ध है। सूत्रकृताङ्ग सूत्र के छठे अध्ययन के रूप में २९ गाथाओं की प्राकृत भाषा में जो स्तुति की है वह अत्यंत भावप्रवणता लिए हुए है। तदनंतर आचार्य भद्रबाहु कृत 'उपसर्गहर स्तोत्र' है जो जैन समाज में अत्यन्त प्रचलित है। 'वीर स्तुति' पर भी पूज्य गुरुदेव ने पद्यानुवाद और गद्यात्मक विवेचन अत्यन्त सुन्दर ढंग से किया है।
चिंतामणि पार्श्वनाथ स्तोत्र/किं कर्पूरमयं ...... की रचना किस कवि ने की यह आज तक ज्ञात न हो सका परन्तु यह स्तोत्र इतना सरल और इतना सुबोध है कि संस्कृत का सामान्य विद्यार्थी भी आसानी से समझ सकता है। पूज्य गुरुदेव ने इस स्तोत्र पर भी प्रवचन दिये हैं जो अभी अप्रकाशित है। इस प्रकार अन्य शताधिक स्तोत्र जैन परंपरा में प्रचलित है और उनका नित्य प्रति पाठ किया जाता है।
यद्यपि जैन परंपरा भक्तिवादी नहीं है। वह आचारवादी रही है तथापि बिना भक्ति के मनुष्य का मानस आनन्दानुभूति नहीं कर सकता। अत: भक्तिवाद-धारा का प्रस्फुटन वैदिक परंपरा की ही देन है उसका अनुसरण जैनाचार्यों ने समय-समय पर किया हैं। बौद्ध परंपरा में भी अनेक स्तोत्र हैं जो तथागत बुद्ध तथा बौद्ध परंपरा में मान्य तारादेवी पर हैं। भाषा संस्कृत है। महाकवि अश्वघोष ने अपने बुद्धचरित में पूरा एक सर्ग ही बुद्ध-महिमा में गुम्फित कर दिया है। अस्तु !
भगवान् महावीर की स्तुति अष्टक पर पूज्य गुरुदेव ने जो प्रवचन दिये थे उनका संकलन/संपादन साध्वी संप्रज्ञा ने किया है। साध्वी संप्रज्ञा आचार्य चंदनाजी की शिष्या है तथा अध्ययनादि में विशेष अभिरुचि रखती है। उन्होंने पूरे परिश्रम के साथ इसका जो संकलन/संपादन किया है उसके पठन से यह स्तोत्र लोकप्रियता को अवश्य ही प्राप्त होगा एतदर्थ मैं साध्वी संप्रज्ञा जी को धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ और आशान्वित हूँ कि भविष्य में भी वह अपना योगदान प्रदान करती रहेंगी।
विजयमुनि 'शास्त्री'
साहित्यरत्न
महावीर जयन्ति १९९७ वीरायतन राजगीर
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