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________________ अनेकान्त है तीसरा नेत्र अनेकान्त ही एक ऐसा तत्त्व है जो निर्णय तक पहुंचाता है। उससे अतिरिक्त कोई तत्त्व ऐसा नहीं जो निर्णय तक पहुंचाए। हम अनेकान्त का सहारा लेकर ही निर्णय तक पहुंच सकते हैं 1 ९० एक आदमी बुरा है, धोखेबाज है, चोर है। कोई भी व्यक्ति उसके साथ व्यवसाय में नहीं जुड़ेगा। यह निर्णय वर्त्तमान पर्याय के आधार पर लिया जाता है । किन्तु व्यक्ति का वर्त्तमान पर्याय ही सब कुछ नहीं है । अनेकान्त के चार आधार हैं - द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव । हमारा सारा व्यवहार सापेक्ष होता है । हमारे सारे निर्णय द्रव्य - सापेक्ष, क्षेत्र - सापेक्ष, काल - सापेक्ष और भाव - सापेक्ष होंगे। इन अपेक्षा-सूत्रों को छोड़कर निर्णय नहीं लिया जा सकता। एक व्यक्ति चोर है, लुटेरा है, डाकू है। उसके साथ क्या व्यवहार किया जाए, यह निर्णय वर्त्तमान पर्याय की अपेक्षा से होगा । वह काल - सापेक्ष निर्णय होगा । यह पूर्ण निर्णय नहीं माना जा सकता, क्योंकि व्यक्ति में और अनेक संभावनाएं हैं। यदि हम संभावनाओं को छोड़ देते हैं तो हमारी गतिविधियां ठप्प हो जाती हैं । यदि हम भविष्य में होने वाले पर्यायों को नकार देते हैं तो विकास के लिए कोई अवकाश नहीं रहता । एक बच्चा बहुत नटखट हैं । उस वर्त्तमान पर्याय के आधार पर बच्चे को अयोग्य घोषित कर दिया जाए और संभावनाओं को अस्वीकार कर दिया जाए तो उस बच्चे का जीवन अंधकारमय बन जाता है। कोई भी माता-पिता अपने बच्चे की संभावनाओं को अस्वीकार नहीं करते। कोई भी अध्यापक अपने विद्यार्थी के भावी जीवन की संभावनाओं को अस्वीकार नहीं करता । मेरी अपनी बात है । बचपन में मैं मंद बुद्धि था । यदि उस अवस्था को देखकर आचार्य तुलसी मुझे अयोग्य घोषित कर देते तो मैं आज “महाप्रज्ञ” नहीं बन पाता । वर्त्तमान पर्याय के आधार पर यदि सार्वभौम निर्णय ले लिया जाए, संभावनाओं को अस्वीकार कर दिया जाए तो विकास की सारी संभावनाएं लुप्त हो जाती हैं । निर्णय वर्त्तमान पर्याय के आधार पर होता है, किन्तु साथ- सात संभावनाओं के द्वार खुले रहते हैं तो कोई अनिष्ट नहीं होता । अन्यथा विकास अवरुद्ध हो जाता 1 है । महान् दार्शनिक और वैज्ञानिक आइस्टीन की घटना है। बचपन की बात है । वे पढ़ने के लिए स्कूल गए। अध्यापक ने कहा- तुम मंद बुद्धि हो। तुम गणित नहीं पढ़ सकते । तुम्हारा श्रम व्यर्थ है । गणित पढ़ने के लिए बुद्धि का तेज होना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
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