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प्रवचन ६
संकेतिका १. चेतना के दो स्तर हैं—स्थूल और सूक्ष्म। २. सूक्ष्म चेतना के स्तर पर समाज के बीज होते हैं और स्थूल चेतना के
स्तर पर वे पुष्पित, पल्लवित होते हैं। ३. इच्छा व्यक्ति की सामाजिकता का लक्ष्य है। ४. स्वतन्त्रता का अर्थ है-सापेक्षता। ५. सापेक्षता का अर्थ है-सीमाबोध-हम सब अधूरे हैं, कोई सर्वथा पूर्ण
नहीं है, इसलिए सब सापेक्ष हैं। ६. एक भाई ने पूछा-क्या स्वतन्त्रता संभव है ? मैंने कहा-यह मत पूछो।
यह पूछो-क्या परतन्त्रता संभव है ? यदि परतंत्रता संभव है तो स्वतन्त्रता
भी संभव है। ७. अस्तित्व में हर तत्त्व अनन्त है । विस्तार में हर तत्त्व सांत—ससीम है। ८. क्या अनेकान्त अनिश्चय है? अनिश्चय नहीं, देश-काल-सापेक्ष निश्चय
करना अनेकान्त का मूल सूत्र है। ९. द्रव्य-सापेक्ष निर्णय—अस्तित्व में सब स्वतन्त्र ।
• क्षेत्र-सापेक्ष निर्णय-क्षेत्र की अपेक्षा स्वतन्त्र भी और परतन्त्र भी। काल-सापेक्ष निर्णय-भूत, वर्तमान और भविष्य की अपेक्षा से होने
वाला निर्णय। • भाव-सापेक्ष निर्णय-अवस्था की अपेक्षा से होने वाला निर्णय।
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