________________
अनेकान्त है तीसरा नेत्र
चूर हो गया। उसे खाली हाथ लौटना पड़ा। वह आचाय क समक्ष उपस्थित हुआ। आचार्य ने पछा-वत्स ! मेरे आदेश का पालन नहीं किया? वह बोला--गुरुदेव ! सुबह से शाम तक जंगल में घूमता रहा। सारा जंगल मैंने छान डाला। परन्तु एक भी पौधा ऐसा नहीं मिला जो औषधि न हो । आचार्य बोले-वत्स ! तुम औषधि-विज्ञान में निष्णात हो गए। तुम्हारा अध्ययन सम्पन्न है।
क्या कारण है कि एक भी पौधा ऐसा नहीं है जो औषधि के रूप में काम न आता हो? एक भी विचार ऐसा न मिले जो गलत न हो। एक भी दृष्टि ऐसी नहीं मिलती जो मिथ्या हो। क्या यह कोई जाद का चमत्कार है? क्या संसार में कोई मिथ्या या असत्य नहीं है? यदि संसार में कुछ भी असत्य नहीं है तो सब कुछ सत्य है। यदि ऐसा नहीं है तो फिर असत्य प्राप्त क्यों नहीं होता?
अनेकान्त के अभ्यासी को कोई मिथ्या दृष्टि मिलती ही नहीं। सारी मिथ्या दृष्टियां एकान्तदर्शी के लिए संभव होती हैं। जिसने अनेकान्त को हृदयंगम कर लिया उसके लिए कोई भी दृष्टि मिथ्या नहीं होती। फिर प्रश्न होता है कि कौन-सा सम्यक् है और कौन-सा असम्यक् ? इस प्रश्न का उत्तर किसी साम्प्रदायिक व्यक्ति से लिया जाए तो वह कहेगा-मेरे शास्त्र सम्यक् हैं, तुम्हारे शास्त्र मिथ्या हैं, असम्यक हैं। किन्तु जब अध्यात्म की दृष्टि से, अनेकान्त की दृष्टि से विचार किया गया तो उन्होंने कहा-शास्त्र कोई सम्यक् नहीं होता और शास्त्र कोई मिथ्या नहीं होता। सम्यग-दृष्टि व्यक्ति के लिए सारे शास्त्र सम्यग् हैं और मिथ्यादृष्टि व्यक्ति के लिए सारे शास्त्र मिथ्या हैं । शास्त्र का सम्यग् होना या मिथ्या होना हमारी दृष्टि पर निर्भर है। जब अनेकान्त की दृष्टि जाग जाती है तब सब कुछ सम्यग् हो जाता है, मिथ्या कुछ लगता ही नहीं। जब तक हम इन दो आंखों से देखते हैं तब एक सत्य लगता है, एक असत्य लगता है। एक प्रिय होता है, एक अप्रिय होता है। एक स्वीकार्य होता है एक अस्वीकार्य होता है। किन्तु जब तीसरी आंख खुल जाती है, तब न प्रिय और न अप्रिय, केवल पदार्थ बचता है। जब तीसरी आंख खुल जाती है तब न कुछ नश्वर और न कुछ अनश्वर, न कुछ नित्य और न कुछ अनित्य रहता है, तीसरी जाति बन जाती है। यह तीसरी आंख है-अनेकान्त । अनेकान्त का रहस्य : तीसरी आंख का खुल जाना
अनेकान्त के आचार्यों ने कहा--जगत् में कुछ भी सर्वथा नित्य भी नहीं है और सर्वथा अनित्य भी नहीं है। नित्य को देखने वाली आंख अलग होती और अनित्य को देखने वाली आंख अलग होती है। किन्तु तीसरी आंख वह है जो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org