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| प्रस्तुति ।
आज का युग सापेक्षवाद, समन्वय और सह-अस्तित्व से बहुत परिचित है। इन शब्दों के पीछे जो सिद्धान्त काम कर रहा है, जो विचार-दर्शन, आलोक-रश्मियां विकीर्ण कर रहा है, वह है अनेकान्त और स्याद्ववाद ।
अनेकान्त एक चक्षु है। इन दो चर्म चक्षुओं में व्यक्ति से स्थूलरूप को देखा जा सकता है, किन्तु उसके अन्तर्भाव को न तो देखा जा सकता है और न समझा जा सकता है। सामने वाला व्यक्ति या राष्ट्र क्या सोच रहा है, क्यों सोच रहा है, कहां सोच रहा है और किस अवस्था में सोच रहा है? क्या कर रहा है, कब कर रहा है, कहां कह रहा है और किस अवस्था में कह रहा है.---इनका निर्णय किये बिना दूसरे के चिन्तन और प्रतिपादन के साथ न्याय नहीं किया जा सकता। पदार्थ में घटित होने वाले परिवर्तनों को भी नहीं समझा जा सकता।
अनेकान्त का चक्षु वस्तु-जगत् के स्थूल और सूक्ष्म-दोनों पर्यायों या परिवर्तनों को जानने की सर्वोत्तम दार्शनिक प्रणाली है। इस प्रणाली के द्वारा अनाग्रह का विकास किया जा सकता है, विवादों को सुलझाया जा सकता है और संघर्ष की चिंगारियों को शांत कर अन्तत: विश्वशांति का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।
-आचार्य महाप्रज्ञ
प्रेक्षा-ध्यान शिविर राणा-वास मारवाड़ १६-८-८२
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