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________________ अनेकान्त है तीसरा नेत्र बाहर के जगत् को भी स्वीकार करें और भीतर के जगत् को भी स्वाकार करें। यह बाहर और भीतर-दोनों सापेक्ष हैं। भगवान् महावीर ने कहा- "जहा अंतो तहा बाहिं, जहा बाहिं तहा अंतो"-जैसा भीतर में है, वैसा बाहर में है और जैसा बाहर में है वैसा भीतर में है। साधक दोनों को स्वीकार करे। सापेक्षता महान् विज्ञान है ___स्यात" शब्द सापेक्षता का सूचक है। उसके बिना सत्य को जाना नहीं जा सकता और उसकी व्याख्या भी नहीं की जा सकती । यह सचाई ढाई हजार वर्ष पूर्व प्रगट हो चुकी थी, किन्तु हमारे दार्शनिक इसे पकड़ नहीं पाए। हमें साधुवाद देना चाहिए आज के वैज्ञानिक को जिसने यह सप्रमाण प्रतिपादित किया कि सापेक्षता के बिना सत्य की व्याख्या नहीं की जा सकती। उसने इस सचाई को इतनी प्रखरता से पकड़ा कि आज समूचा विज्ञान सापेक्षता के सिद्धांत पर चल रहा है । सापेक्षता का सिद्धान्त जब तक विकसित नहीं हुआ था, तब तक की सारी मान्यताएं, विज्ञान की सारी धारणाएं, आज मिथ्या प्रमाणित हो रही है। आज भौतिकविज्ञान के क्षेत्र में, गणित के क्षेत्र में, सांख्यिकीविज्ञान के क्षेत्र में अनेकान्त का खुलकर प्रयोग किया जा रहा है, सापेक्षता का उपयोग मुक्तभाव से हो रहा है। आज विज्ञान की यह महत्त्वपूर्ण मान्यता है कि सापेक्षता के बिना किसी महान् की व्याख्या नहीं की जा सकती। जब महान वैज्ञानिक आईंस्टीन ने कहा कि देश और काल सापेक्ष हैं, तब वैज्ञानिक जगत् में एक भयंकर हलचल हुई थी। अनेक वैज्ञानिकों ने इसको स्वीकार नहीं किया। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि देश और काल सापेक्ष कैसे हो सकते हैं । किन्तु धीरे-धीरे यह सापेक्षता बुद्धिगम्य होती गई, प्रमाणित होती गई और आज देश-काल की सापेक्षता का सिद्धांत सर्वमान्य हो गया। हम सारी घटना की व्याख्या देश और काल के आधार पर करते हैं, किन्तु यह भुला देते हैं कि देश और काल सापेक्ष हैं। देश-काल के सापेक्ष होने की बात एक वैज्ञानिक ने कही, न कि अनेकान्त और स्याद्वाद को मानने वाले जैनों ने । उन्होंने इस दिशा में कोई महत्त्वपूर्ण काम नहीं किया। कितना अच्छा होता कि जो बात आइंस्टीन ने कही वह बात कोई जैन दार्शनिक कहता, अनेकान्तवाद को मानने वाला प्रतिपादित करता। क्या उनके सामने ये कल्पनाएं स्पष्ट नहीं थी? सापेक्षता का विचार स्पष्ट नहीं था? सारी कल्पनाएं और विचार स्पष्ट थे, पर नए संदर्भ में उसके कथन की बात नहीं सूझी। क्या जैन मानते हैं कि काल निरपेक्ष है। नहीं, काल सर्वथा सापेक्ष है। हमने काल को तीन भागों में विभाजित किया-भतकाल, भविष्यकाल और वर्तमान काल । क्यों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
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