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प्रवचन ३
संकेतिका
१. अतीत और वर्तमान सापेक्ष है-स्थूल जगत् के लिए जो अतीत है, सूक्ष्म
जगत् में वह वर्तमान है। २. भविष्य और वर्तमान सापेक्ष है-मन:पर्यवज्ञान। ३. पूर्ण कौन?--मैं।
अपर्ण कौन?—वह भी मैं ही हूँ। दोनों कैसे?-भाषा के जगत् में जीता हूं इसीलिए, चिन्तन के जगत् में
पूर्ण और अपूर्ण-दोनों सापेक्ष हैं। ४. भाषा से परे होने पर न कोई पूर्ण और न कोई अपूर्ण। फिर केवल
अस्तित्व। ५. सापेक्षता में गौण और मुख्य । ६. ध्यान में आंख बन्द–भीतर की आंख खुलती है। ७. श्वास पौद्गलिक भी है। श्वास प्राण भी है। ८. प्राण को देखना आत्मा को देखना है। . ९. वर्गणाएं:रश्मिवत्। १०. कथन आपेक्षिक होता है। निरपेक्ष कथन कभी नहीं होता । ११. अकबर और आचार्य हीरविजयजी ।
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