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________________ अनेकान्त है तीसरा नेत्र अपने-अपने स्थान पर रख लिया। एक उम्मीदवार बचा। उससे पूछा-तुम क्या : होना चाहते हो? उसने कहा-मैं मैंनेजर होना चाहता हूं। आपकी इस कुर्सी पर बैठना चाहता हूं। कितनी बड़ी महत्त्वाकांक्षा। नियुक्ति हो गई। वह मैंनेजर बन गया। सफलता का सूत्र : संभावनाओं का स्वीकार अनन्त पर्याएं हैं। हमारे भीतर अनन्त संभावनाएं छिपी हुई हैं। कोयला हीरा बन सकता है। आज तो यह निश्चित मान्यता हो गई है। कि कोयला ही हीरा बनता है। कोयले में हीरा बनने की संभावना छिपी हुई है। हर पदार्थ में सब कुछ बनने की संभावना होती है। यह अनेकान्त की स्वीकृति है। असंभावना तो बहुत ही थोड़ी है। चेतन, अचेतन नहीं बन सकता और अचेतन, चेतन नहीं बन सकता। इसके अतिरिक्त सब कुछ बना जा सकता है। कोई भी ऐसा नियम नहीं है जो एक-दूसरे में न बदल सके या न बन सके। सब कुछ बना जा सकता है। सारी संभवनाएं हैं। मिट्टी के एक कण में सारे वर्ण, सारे गंध और सारे स्पर्श होते हैं। मिट्टी का एक कण चीनी से अनन्तगुना मीठा होता है। हम संभावनाओं को मानकर ही ध्यान की साधना में संलग्न हए हैं। हमारे भीतर अनन्त चेतना है, अनन्त ज्ञान है । कैवल्य है हमारे भीतर । हमारे भीतर अनन्त शक्ति है, अनन्त आनन्द है। इन सबके अभिव्यक्त होने की संभावना को मानकर हम यह विशेष उपक्रम करते हैं। यदि यह संभावना न हो तो कौन इतना समय लगाए? कौन इतने कष्ट सहे और कौन इन्द्रियवान होते हुए भी अनिन्द्रियवान् होकर बैठा रहे? जगत् से अलग-थलग होकर, अपने आप में सिमटकर पांच-पांच छह-छह घंटे तक ध्यान-कायोत्सर्ग करने का उपक्रम इसीलिए हो रहा है कि उन संभावनाओं को हम जानते हैं। वे ज्ञात हैं। यह भी ज्ञात है कि उपयुक्त उपक्रम से वे संभावनाएं अभिव्यक्त होती हैं। रोग एक पर्याय है। वह प्रगट होता है। आदमी रोगी बन जाता है। स्वस्थ या नीरोग होना भी एक पर्याय है । वह हमारे भीतर है। उसकी संभावना है। उसके प्रगट होते ही रोग दब जाता है। हमारे में स्वास्थ्य की अनन्त संभावनाएं हैं। उनके प्रगट होते ही रोग दब जाता है। आदमी इसीलिए निराश होता है कि वह अनेकान्त के नियम को नहीं जानता। वह इस बात को भूल जाता है कि कोई भी पर्याय शाश्वत नहीं होता। हर पर्याय बदलता रहता है। एक रोग का पर्याय प्रगट हुआ, हमारा प्रयत्न चले तो नीरोगता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
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