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________________ अनेकान्त है तीसरा नेत्र भगवान् ने कहा–'विगमेइ वा' ! विनष्ट होना तत्त्व है। मन पुन: आशंका से भर गया। उत्पन्न होना भी तत्त्व है और विनष्ट होना भी . तत्त्व है । उत्पन्न होना और नष्ट होना, जन्मना और मरना-यह तत्त्व कैसे? जन्मा और मरा, फिर शेष क्या रहा? बात पूरी तरह समझ में नहीं आई। उन्होंने फिर पूछा-भन्ते ! किं तत्तम् ? तत्त्व क्या है? भगवान् ने कहा-ध्रुवेइ वा ! ध्रुव रहना, शाश्वत रहना तत्त्व है ? गौतम का मन समाहित हो गया। उत्पन्न होना, नष्ट होना और अपने अस्तित्व में बने रहना-त्रिपदी तत्त्व है, सत्य है। सष्टि, प्रलय और अस्तित्व—यह तत्त्व है। शाश्वत् और अशाश्वत् का एक युगल है। यह तत्त्व है। जैसे स्त्री और पुरुष का एक जोड़ा होता है-वैसे ही प्रकृति में भी एक जोड़ा होता है शाश्वत् और अशाश्वत् का। कोरा शाश्वत् या नित्य भी नहीं और कोरा अशाश्वत् या अनित्य भी नहीं। शाश्वत् और अशाश्वत, नित्य और अनित्य-यह युगल होता है । यह है तत्त्व । इस सृष्टि में कोरा नित्य होता तो उसके लिए नामकरण की सुविधा नहीं होती। क्या नाम रखा जाए? यदि अनित्य है तब तो नित्य को जाना जा सकता है और नित्य है तो अनित्य को जाना जा सकता है । किन्तु यदि कोरा नित्य होता या कोरा अनित्य होता तो कोई नामकरण नहीं हो पाता । यदि कोरा प्रकाश होता, अन्धकार नहीं होता तो प्रकाश का नामकरण ही नहीं हो पाता। जितने नाम बनते हैं, वे विरोधी के आधार पर बनते हैं । विरोधी दल का होना, यह केवल पोलिटिकल कन्सेप्ट ही नहीं है । विरोधी का . होना यह मूलभूत सिद्धान्त है सारी प्रकृति की व्याख्या का, सारे तत्त्व की व्याख्या का, यदि विरोधी न हो तो कोई तत्त्व हो ही नहीं सकता। कोई तत्त्व है, कोई सत्य है, इसका अर्थ है कि उसका विरोधी तत्त्व है। यदि विरोधी न हो तो तत्त्व का अस्तित्व हो ही नहीं सकता। चेतन का अस्तित्व तब है जब अचेतन है और अचेतन का अस्तित्व तब है जब चेतन है। चेतन के बिना अचेतन का और अचेतन के बिना चेतन का अस्तित्व ही नहीं हो सकता । दोनों का होना अनिवार्य है। . अनेकान्त का सूत्र अनेकान्त का एक सूत्र है-सह-प्रतिपक्ष । केवल युगल ही पर्याप्त नहीं है, विरोधी युगल होना चाहिए । समूची प्रकृति में, समूची व्यवस्था में विरोधी युगलों का अस्तित्व है । ज्ञान है तो अज्ञान भी है । दर्शन है, अदर्शन है। सुख है, दुःख है। मूर्छा है, जागरण है । जीवन है, मृत्यु है। शुभ है, अशुभ है। ऊंचा है, नीचा है। अन्तराय है, निरन्तराय है। शक्ति का विघ्न है, शक्ति की जागृति है। कर्मशास्त्रीय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
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