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________________ सन्तुलन १२१ अनेकान्त का सूत्र-सन्तुलन अनेकान्त का महत्त्वपूर्ण सूत्र है—सन्तुलन । आदमी एक ओर न झुके । तराजू का एक पलड़ा एक ओर न झुके । दोनों पलड़े बराबर रहें, सन्तुलित रहें । एक पलड़ा नियत का है तो दूसरा पलड़ा अनियत का है । दोनों को मानकर चलें। दुनिया में यह नहीं होता कि केवल घोड़ा हो, गधा न हो। घोड़ा है तो गधा भी रहेगा। गधा है तो घोड़ा भी रहेगा। एक ओर घोड़ा और एक ओर गधा-दोनों को साथ में . लेकर चलना है। दुनिया का स्वभाव है-दोनों बातें साथ-साथ चलें। नियंत्रण : अनियंत्रण ___कुछ लोग उलझ जाते हैं। वे कहते हैं—नियंत्रण नहीं होना चाहिए। सब कुछ मुक्त और नियन्त्रण-विहीन । कुछ लोग कहते हैं-नियंत्रण बहुत आवश्यक है। सब कुछ नियन्त्रित होना चाहिए। दोनों एकांगी हैं । एकांगिता से सन्तुलन बिगड़ता है। जहां सन्तुलन नहीं रहता, परिणाम बुरे होते हैं। नियन्त्रण को सर्वथा अस्वीकार करना भी अच्छा नहीं है और सर्वथा स्वीकार करना भी अच्छा नहीं है । अनियन्त्रण को सर्वथा स्वीकार करना भी अच्छा नहीं है और सर्वथा अस्वीकार करना भी अच्छा नहीं है । दोनों का सन्तुलन आवश्यक है। शरीर में दो प्रकार का नाड़ी-संस्थान है। एक है स्वत: चालित नाड़ी-संस्थान । यह है ऐच्छिक नाड़ी-संस्थान । दूसरा है-अनैच्छिक नाड़ी-संस्थान। मैं चाहूं तो अंगुली को हिला सकता हूं और न चाहूं तो उसे बन्द कर सकता हूं। यह नाड़ी-संस्थान मन से नियन्त्रित होता है। यह ऐच्छिक नाड़ी-संस्थान है। अनैच्छिक नाड़ी-संस्थान अपने आप काम करता है। मन का उस पर नियन्त्रण नहीं होता। मन चाहे कि हृदय स्पन्दन करे तो करे और न चाहे तो न करे—यह कभी नहीं हो सकता। साधना के विशेष प्रयोगों की बात को हम छोड़ दें, अन्यथा हृदय का स्पन्दित होना मन के वश में नहीं है। साधना के विशेष प्रयोगों के द्वारा पूरे नाड़ी-संस्थान पर नियन्त्रण पाया जा सकता है, पर यह विशेष स्थिति है, सामान्य स्थिति नहीं है। सामान्य बात है कि रक्त अपनी गति से पूरे शरीर में संचरण करता है हृदय अपनी गति से स्पन्दन करता है, धड़कता है । वह रक्त को फेंकता है, पंपिंग करता है। फेफड़ा रक्त का शोधन करता है। जितने भी ये ओटोनोमस नर्वस् हैं, अवयव हैं, वे सभी अपनी गति से काम करते हैं। मन का नियन्त्रण उन पर नहीं है और वह मान्य भी नहीं है। . हमारे शरीर में दोनों व्यवस्थाएं हैं । नियन्त्रण की भी व्यवस्था है और अनियन्त्रण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
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