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________________ सन्तुलन सीमाबोध की फलश्रुति : सन्तुलन __अनेकान्त एक दर्शन है, सिद्धान्त है उसके द्वारा दुनियां के सार्वभौम नियमों की व्याख्या होती है और परिवर्तनशील नियमों की भी व्याख्या होती है। कुछ नियम सार्वभौम होते हैं । कुछ नियम परिवर्तनशील हैं। कुछ नियत होता है, कुछ अनियत है । सब कुछ नियत नहीं है और सब कुछ अनियत नहीं है। दोनों साथ-साथ चलते हैं, क्योंकि विश्व में ऐसा एक भी तत्त्व नहीं है जिसका एक-छत्र शासन हो। सब की सीमा है। काल का महत्त्व है, पर उसका एक-छत्र शासन नहीं है। ऐसा नहीं है कि सब कुछ काल से ही होता है । पुरुषार्थ का बहुत बड़ा महत्त्व है, पर एक-छत्र शासन उसका भी नहीं है । नियति और कर्म का बहुत बड़ा महत्त्व है, पर वे ही सब कुछ नहीं हैं । एकाधिकार किसी का नहीं है। सब पूर्ण हैं अपनी सीमा में और अपूर्ण हैं दूसरों की सीमा में । सीमाबोध की व्याख्या से फलित होता है-सन्तुलन। सन्तुलन है सेतु यह विश्व विरोधी हितों, विरोधी स्वार्थों और विरोधी विचारों वाला है। यदि सन्तुलन न हो तो सब कुछ अस्त-व्यस्त हो जाता है । शरीर चलता है । वह इसीलिए चलता है कि उसमें सन्तुलन है। दो विरोधी प्राणधाराएं शरीर में प्रवाहित हैं। प्राण अपान का विरोधी है और अपान प्राण का विरोधी है। दोनों में सन्तुलन है, इसीलिए आदमी जी रहा है। शरीर में अनेक ग्रन्थियां हैं। उनके कार्य अलग-अलग हैं, परन्तु उनमें सामंजस्य है, सन्तुलन है। जब तक सन्तुलन है तब तक स्थिति ठीक चलती है। जब असन्तुलन होता है तब सब कुछ गड़बड़ा जाता है। सन्तुलन विरोधों के मध्य एक सेतु है। वह विरोधों में टकराहट नहीं होने देता। वह दोनों को उपयोगी बना देता है । अनेकान्त ने सन्तुलन की विशुद्ध व्याख्या की है। नियम अपने-अपने विश्व में दो प्रकार के तत्त्व हैं-चेतन और अचेतन। अचेतन या स्थूल पदार्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
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