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( ७८ ) अभिषेक । स्त्रियों से अरुचि । जयसेन नाम से उसके दान की ख्याति मित्रमती
के कानों पहुंची। ११. धन प्राप्ति निमित्त मित्रमती का पंगुल को कंधे पर बिठाकर गमन । पति-भक्ति
देख सभी की श्रद्धा। १२. नगर में उनकी गायनकला की ख्याति । राजसभा में गमन । राजा का प्राशी
दि के स्वर से मित्रमती को पहिचानकर पुरानी बातों के स्मरण सहित उसको साधुवाद । उसे धन देकर राजा की प्रव्रज्या । नारी के कपट पर सिंहबल नृप की कथा । पृथ्वीपुर का राजा गोविन्द, महाबल पाइक । गोमती पुत्री पलासकूट के पटेल सिंहबल को विवाहित । दोनों में कलह । सिंहबल का ग्रामान्तर गमन व हरिषेण की पुत्री सुभद्रा से विवाह । गोमती सुनकर रात्रि को सौत का सिर काट लायी। मार्ग में विघ्न भय से वट वृक्षारोहण । चोरों को डराकर धन प्राप्ति । घर पाकर तेल में सिर को तलकर रखना। विक्षोभ सहित पति का प्रागमन । भोजन थाल में सिर को परोसना । पति का भय । भाले से पति का वध । पतिघात पर वीरवती की कथा । राजगृह, धनमित्र सेठ का पुत्र दत्त । निकटवर्ती ग्राम के वणिक् की पुत्री वीरवती से विवाह । वधू पति से विरक्त, अंगारक चोर से अनुरक्त । चोर को शूली। वीरवती का उसके समीप गमन । दत्त के
मित्र सुषेण द्वारा छिपकर दर्शन । १६. चोर की इच्छानुसार पत्थरों के ढेर पर चढ़कर आलिंगन। चोर द्वारा प्रोष्ठ
कर्तन । पत्थरों के विघटन से वीरवती का पतन । घर आकर कोलाहल व पति पर दोषारोपण । राजा द्वारा प्राणदण्ड । सुषेण के साक्ष्य से रक्षा । खंडित प्रोष्ठ का चोर के मुख में प्रदर्शन ।
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संधि-३५ कडवक १. प्रशंसनीय महिलाओं के उदाहरण । रोहिणीकथा । सूरसेन जनपद, सौरीपुर,
राजा वसुदेव, महादेवी रोहणी, रोहिणेय पुत्र । सदा माता के समीप रहने से
जनापवाद । पनिहारिनों में चर्चा । २. गोपी द्वारा रोहिणी को समाचार । यमुना के पूर में दिव्य परीक्षा । ३. सतीत्व के प्रभाव से यमुनाजल का स्तंभन, किन्तु नगर का प्लाधन । लोगों की
पुकार । सती के वचन से उत्तर की ओर प्रवाह आज तक । सीता के सतीत्व की अग्नि परीक्षा का उल्लेख मात्र । सर्प का माला में परिवर्तन, पर सोमा की कथा का उल्लेख मात्र । चम्पापुरी, जिनदास सेठ । भार्या सहित श्रावस्ती गमन । वन में भार्या पर सन्देह । जिनदासी द्वारा सिंह को देह
समर्पण । महासती कह कर सिंह का परावर्तन । ५, सती का पाख्यान । अयोध्या का राजा सुरत, रानी सती। धर्म श्रवण । मुनि.
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