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( ७५ ) २२. उस व्याध ने वज्रायुध मुनि को प्रतिमायोग में देख बाण से वध किया। मुनि
सर्वार्थसिद्धि गये । व्याध तमःतम नरक गया। रत्नायुध और मणिमाला श्रावक-व्रत के फल से अच्युत कल्प में देव हुए और फिर धातकी खंड द्वीप के पूर्व मेरु, अपरविदेह, गंधिल विषय, अयोध्यापुरी में अरुहदास राजा और सुव्रता और जिनदत्त रानियाँ हुई। उनके पुत्र वीतभय और विभीषण हुए, जो क्रमशः बलदेव और नारायण हुए। उनका चिरकाल राज्य, फिर स्वर्ग और नरक गमन । विभीषण का जन्म जम्बूद्वीप, पश्चिम विदेह, गंधमालिनि देश, वैताढ्य पर्वत, श्रीपुरी में श्रीधर विद्याधर और श्रीदत्ता देवी के पुत्र के रूप में, नाम श्रीदाम । विद्या साधते हुए भ्राता बलदेव ने देखा, संबोधन किया, जैनधर्म में स्थापित, पंचम स्वर्ग में देव । इसी बीच वह सर्प तमःतमा नरक से निकल पुनः सर्प, पुनः
नारकी हुआ। २४. पुन: पुनः तिर्यंच और नरक गतियों में भ्रमण कर वह भरतक्षेत्र, ऐरावती
नदी के तट पर भूताटवी में खंडमालि तापस और कनककेशी का पुत्र मृगभंग (मृगाशन) मिथ्यात्वी पंचाग्नि तपस्वी हुआ । चन्दाभ विमान को देख उसने निदान किया और मरकर नभवल्लभ नगर में वज्रदाढ़ और विद्युत्प्रभा का पुत्र विद्युद्दाढ़ हुआ । वह विमान द्वारा क्रीड़ा को निकला । इसी समय वज्रायुध
का जीव सर्वार्थसिद्धि से च्युत होकर२५. वीतशोक नगर में संजयन्त हुआ। उसे प्रतिमायोग में स्थित देख विद्युद्दाढ़
कुपित हो उपसर्ग करने लगा। उसे सहकर संजयन्त मोक्ष गया। यही वह सिंहपुर का राजा संजयन्त है, और यह है वह श्रीभूति । वही पुराना वैरी श्रीदाम जयन्त हुआ और तू वह भुजंगराज व पूर्णचन्द्र और मैं हूँ वह रामदत्ता
का जीव लातवेन्द्र । यह सुन धरणेन्द्र शान्त हुआ। २६. श्रीमंत पर्वत पर जो संजयन्त की प्रतिमा है। उसके सम्मुख विद्यानों की
सिद्धि । धरणेन्द्र यह कहकर अपने स्थान को गया। मथुरा के राजा अनन्तवीर्य
और रानी धनमाला देवी के वे पूर्व जन्म के दोनों भाई पुनः भ्राता राजकुमार हुए और विमलनाथ गणधर के समीप केवली होकर मोक्ष गये।
परद्रव्यापहरण के पाप से श्रीभूति अब भी संसार के नाना दु:ख भोग रहा है।
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संधि-३३
कडवक
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१. विषयासक्ति का दुष्परिणाम-शिव शर्मा (वारत्रक) का आख्यान । अहिच्छत्र
पुर । शिवभूति विप्र। सोमशर्मा और शिवशर्मा पुत्र । पढ़ने में मन न लगाने से पिता द्वारा वरत्रा (कोड़े) से पीटे जाने के कारण लघु पुत्र का प्रसिद्ध नाम वारत्रक । उसका पांडित्य व उक्त नाम से अरुचि । निग्रंथ होना। जल
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