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________________ २०३ २०३ २०३ २०४ ७. नागदेव का आगे कथन । विजया से नील महानील विद्याधरों का निर्वासित होकर यहां आगमन । उनका सागर मुनि से प्रश्न । सागर मुनि की भविष्यवाणी। जब तुम दक्षिण देश के आभीर विषयवर्ती तेरापुर में बारह वर्ष रह चुकोगे तथा धाराशिव पल्ली के समीप गिरितल पर सहस्र स्तंभ जिनभवन बनवाकर अष्टाह्निक महोत्सव व आठ दिन का उपवास पूर्वक मंत्राराधन करोगे तब तुम्हारी इच्छा पूर्ण होगी। उन्हीं का यहां आकर राज्यस्थापन । जिनालय निर्माण व पुन: विद्याधर पद प्राप्ति । नागदेव द्वारा करकंडु की भी प्रशंसा । ६. नागदेव का गमन । प्रातः करकण्ड द्वारा वामी का खनन व जिनप्रतिमाकर्षण एवं लयन में पानयन । लयन की मूल प्रतिमा में पाषाण-ग्रंथि अवलोकन । ग्रंथि का स्फाटन । जलवाहिनी निर्गमन । नैमित्तिक के वचनानुसार पाषाण-चयन व बंधान । करकंडु का पश्चात्ताप । नागदेव का पुनरागमन व संबोधन । एक और लयन के निर्माण का उपदेश । दूसरा एक और छोटा लयन महादेवी के नाम का बनवाया गया। तीनों लयनों में प्रतिष्ठा एक साथ करायी गयी। चम्पापुर प्रागमन । मुनि संघ का प्रागमन । वन्दना। पदमनाभ मूनि से पूर्वभव संबंधी प्रश्न । मूनि का उत्तर -तेरापुर में नील-महानील के राज्यकाल में धनमित्र वणिक् । उसके धनदत्त गोपाल का कमल तोड़ना, नागदेव द्वारा निरोध व सबसे श्रेष्ठ और पूज्य की उस कमल से पूजा का आदेश । धनमित्र की पूजा का प्रयत्न । १४. वणिक् द्वारा नील राजा को, राजा द्वारा यशोधर मुनि को व मुनि द्वारा परहंत देव को पूजने का निर्देश । १५. उस पूजा के फल से चम्पानरेश पद की प्राप्ति । करकंडु का तपग्रहण व स्वर्ग-प्राप्ति । २०४ २०५ १३. २०५ २०५ पृष्ठ २०७ सन्धि १९ कडवक १. भक्ति के फल पर रोहिणीचरित्र । श्रेणिक का गौतम मुनि से प्रश्न । गौतम का उत्तर-भारतवर्ष, चम्पापुरी, राजा मघवंत । २. रानी श्रीमती के श्रीपाल आदि पाठ पुत्र व उनसे छोटी पुत्री रोहिणी । कार्तिक में नन्दीश्वर-पर्व के दिन रोहिणी का उपवास व पिता को शेष अर्पण । राजा को पुत्री के विवाह की चिन्ता। चारों मंत्रियों के साथ मंत्रणा। ३. सुबुद्धि मंत्री द्वारा स्वयंवर का प्रस्ताव । स्वयंवर योजना । ४. राजकुमारी के मंडप में प्राने पर राजाओं की चेष्टाएं। ५. नेपाल प्रादि देशों के राजानों को व्यथा पहुंचाती हुई राजकुमारी का अशोक कुमार के पास आगमन । २०७ २०८ २०८ २०८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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