________________
पृष्ठ
१६८ १६८
१७०
संधि-१५ कडवक १. राजा श्रेणिक का गौतम गणधर से कालक्रम संबंधी प्रश्न । उत्तर-तुम्हारी
(श्रेणिक की) मृत्यु के तीन वर्ष आठ माह पन्द्रह दिन पश्चात आषाढ़ पूर्णिमा समाप्त होने पर श्रावण प्रतिपदा से पंचम काल प्रारंभ । तब उत्कृष्ट प्रायु १२० वर्ष व शरीर प्रमाण ७ हाथ । एक सहस्त्र वर्ष पश्चात् पाटलिपुर में
दुर्मुखकल्कि की उत्पत्ति । २. साधुओं पर संकट । कल्र्का का मारा जाना। ३. पंचमकाल में नीति व गुणों का ह्रास और अनीति की वृद्धि । ४. स्त्री पुरुषों में दोष वृद्धि । प्रकृति में परिवर्तन । अंतिम कल्कि कोशलपुर का
दुर्दर्शन । कल्कि का उनकी वृत्ति के संबंध में प्रश्न । मंत्री का उत्तर-भिक्षाहार । उसे
भी ग्रहण करने पुरुष-प्रेषण । उस समय सागरचन्द्र नामक एक मात्र मुनि शेष । ६. प्राज्ञा न मानने वालों के संबंध में प्रश्न । उत्तर में निग्रंथ साधुओं के गुण-धर्मों
का उल्लेख । ७. और एक मात्र श्रावक सागरदत्त । आहार का भी कर देकर मुनि और श्रावक
का स्वर्गवास । निग्रंथ साधुनों का प्रभाव । वज्रपात से राजा की मृत्यु । कार्तिक की अमावस्या को सूर्योदय में सागरचन्द्र का स्वर्गवास, पूर्वाह में धर्मनाश, मध्यान्ह में राजकुल क्षय, अपराण्ह में अग्नि का नाश तत्पश्चात सबका
कच्चा भोजन । आषाढ़ पूर्णिमा के पश्चात कलिकी समाप्ति ।। ८. श्रावण प्रतिपदा से अति कलिकाल का प्रारंभ । उत्कृष्ट प्रायु बीस वर्ष व
शरीराकृति एक हाथ प्रमाण । फिर प्रलय काल । जल का सूखा, पृथ्वी का फटना। सप्त रात्रि वनाग्निपात, सप्तरात्रि प्रचण्ड वायू, सप्त रात्रि विषयुक्त जलवष्टि, सप्त रात्रि खारी जलवृष्टि फिर कषाय, कटु, तीखे व कांजी सदृश व तत्पश्चात् अमृतोपम जलवृष्टि । फिर पृथ्वी पर बीजांकुरादि की उत्पत्ति व मानव वृद्धि पुनः राजा का गणधर से प्रश्न । क्या विजयाध पर्वत पर वज्रानल नहीं पड़ता ? उत्तर- नहीं । आर्यखंड के मध्य में ही प्रलय होता है, पंच म्लेच्छखंडों में नहीं । वहां सर्वत्र दुषम और सुषम काल मात्र की प्रवृत्ति । वहां प्रायु आदि का प्रमाण । अतिदुषम काल के पश्चात, दुषमकाल व आयु शरीर प्रमाण आदि । सहस्र वर्ष
शेष रहने पर चौदह कुलकरों की उत्पत्ति । उनके नाम । ११. तत्पश्चात चौबीस तीर्थंकर । उनमें प्रथम पद्म नामक तुम ( श्रेणिक ) । अन्य
भावी तीर्थंकरों के नाम। भरत आदि बारह भावी चक्रवर्तियों के नाम । तथा नव बलदेव नारायण और उनके प्रतिशत्रु । नव नारद, चौबीस कामदेव व अन्य प्रकार के राजा । उत्कृष्ट प्रायु व शरीर प्रमाण । दुषम-सुषम काल में दश प्रकार के कल्पवृक्ष ।
१७०
u.
१७२
१७२
१७३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org