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________________ ४६. १७. २ ] कहकोसु [ VEE घत्ता--तं पेक्खेप्पिणु कारणु पुच्छिय धाइ तए । तात्र वि कहिउ महाहवु वट्टप तुज्झ कए ।।१४।। ५ तहिँ पडिउ निवहो कासु वि ससोहु एत्थाणिउ गिद्धे हत्थु एहु । ता पेसेवि पुरिसु निवंगयात्र जाणाविउ तायो भयगयाए । महु लग्गेवि निक्कारणु वराउ मारावेवि एत्तिउ भडनिहाउ। गइ कवण लहेवी सुद्धि कत्तु मु” गाहु पबोहहि निययचित्तु । ता राएँ प्रायन्नेवि एउ दिन्नी अभयमइ मुएवि खेउ । परिणिय गुरुदत्ते सायरेण नं रुप्पिणि हलहरभायरेण ।। परिणेप्पिणु निवसइ तत्थ जाम केण वि आवेप्पिणु कहिउ ताम । एत्थच्छइ काणणे वग्घु देव पवियंभइ. कुद्धकियंतु जेव । उव्वासिउ जणवउ तेण सव्वु किउ भडसमूहु परिगलियगव्वु । घत्ता--तोणिमंतु गिरि गंपिणु गुरुदत्तेण तउ। सयलें खंधावारें वग्घहो वेढु कउ ॥१५॥ १६ जणु नियवि निरंतर प्रोसरेवि थिउ सो वि गुहंतर पइसरेवि । ता तहिँ तणकट्ठनिवहु छहेवि माराविउ खलु जलणे डहेवि । तत्थेव विस्सदेवहीं दियासु हुउ पुत्तु विस्सदेवीपियासु । नामेण सहिंसो कविलकेसु जमदूउ नाइ थिउ विप्पवेसु । अच्छेवि तत्थ गुरुदत्तराउ गउ मियपुरु पत्तु जणाणुराउ। अभयमइ सुउ सव्वंगभदु जायउ नामेण सुवन्नभदु । एक्कहिँ दिणे रंजियजणमणम्मि धरणीधरे धरणीभूसणम्मि । अमियासवु नामें हयमएहिँ परियरियउ सत्तहिँ रिसिसएहिँ । आयरिउ [ समाउ ] जगप्पयासु गउ वंदणहत्तिण निवइ तासु । पणवेप्पिणु विणएँ मुणि वरिठ्ठ करिनयरनाहु अग्गा निविठ्ठ। १० पुच्छंतहो तही गणिणा वि धम्म कहिऊण पयासिउ पुव्वजम्मु । घत्ता-तुहुँ उवरिचरु नराहिवु पुणु फणि फणिअमरु । हुउ गुरुदत्त महीवइ एबहिँ एत्थु वरु ।।१६।। १७ पहुपुच्छावसाणे अभयमइग कहहि भडारा कहिँ हउँ होती पुच्छिउ साहु समंजसु सुमइट। किं किउ जेणेरिसु पइ पत्ती। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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