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________________ ४६० ] सिरिचंदविरइयउ [ ४८. १६. १२____घत्ता--पच्छा नामें वीरसिरि धीय सलक्खण अवरुप्पन्नी । सा सइ कोंचनराहिवहो रोहीडयपुरे परिणहुँ दिन्नी ।।१६।। अणुदियहु कुमारु कलाउ लेंतु वड्डिउ नवयंदु व दिहि जणंतु । हुय चउदह वरिस वसंतमासे जणमणहरे विविहुच्छवपयास । निवकुमरहँ सुहसंपायणा तत्थाहरणाइउवायणा । सव्वाण कएण पसंसियाइँ मायामहेहिँ संपेसियाइँ । आलोइऊण संजायखेउ पुच्छइ नियमायरि कत्तिगेउ । ५ किं महु मायामहु नत्थि मात्र तें णाउ पसाउ पसन्नवाग्र । ता कहिउ ताण जो ताउ तुह मायामहु सो ज्जि पसन्नमुह । निसुणेवि एउ लज्जिउ कुमारु संजायउ जइ वज्जियवियारु । माणावमाणतणमणिसमाणु किक्किंचगिरि गउ विहरमाणु । तहिँ पडिमाजोएँ ठियहो तासु हुय वारिविट्ठि जल्लोसहासु। १० पक्खालेवि तणुमलु जलपवाहु थिउ खोल्लठाण हुउ दहु अथाहु । तहिँ तप्पहूइ अज्ज वि नवंति जो प्रहाइ तासु वाहीउ जंति । __घत्ता--एत्तह सोयविसंतुलिय हा हा पुत्त भणंति विवन्नी । कित्तिय काणणे सिरिगिरिहे वेंतरकुल देवय उत्पन्नी ।।१७।। १८ सो पुव्वसिणेहें देवयात्र तहिँ होतउ रक्खिज्जंतु ताए । संजमधरु पुरु रोहीडु आउ जहिँ सो बहिणीवइ कुंचराउ । कियमासखमणु भिक्खहे पइट्ठ अंते उरे नियबहिणी दिठ्ठ । परियाणेवि भायरु सायराए । सइँ ताइँ खडाविउ नयसिराण समियहाँ भुजंतहो भमलियाहे निवडंतु धरिउ भइणी ताग । ५ अच्चमणु करेप्पिणु जाइ जाम केण वि नरनाहहो कहिउ ताम । परमेसर पाविट्ठण एण माणिउ कलत्तु तुह खवणएण । पत्तियह न जइ तो कि न एहु अवलोयहि कुंकुमलित्तदेहु । ता राएँ रोसवसेण झत्ति पासायत्थेण वि मुक्क सत्ति । उर पहउ ताण निम्महियमारु निवडिउ संपत्तु भमंधयारु'। १० घत्ता--एत्थंतर कत्थइ गइय प्राय माय सुमरेवि तणुब्भउ । जाम नियच्छइ ताम हउ सत्ति पडिउ महिहे छिन्नंगउ ॥१८।। १८. १ संपत्तु मंधयारु। २. छंगउ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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