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________________ संधि ४७ धुवयं-समउ धराण धराधरधीरउ खीलयखीलियसव्वसरीरउ । तो वि न गयकुमारु नियमग्गो चलिउ समाहि लहेवि गउ सग्गहो । इह भरहखेत संपयपउरे सोरट्ठविसप वारमइपुरे । गंधव्वदत्तदेवीहे हुउ गुणि गयकुमारु वसुएवसुउ । तें पोयणपुरवइ दुद्धरिसु वसु करेवि मुरारिहे किउ हरिसु । ५ तेण वि तहो मग्गिउ दिन्नु वरु सच्छंदें विहरण सोक्खकरु । तहिँ भमइ कुमारु निरग्गल उ पुरु नाइ निरंकुसु मयगलउ । दह्णासत्तु मणोहरिहे पंगुलवणिधणहे मणोहरिहे । अणुदियहु सइं अणुहरइ रइ पंगुलु जाणंतु वि किं करइ । रोसेणभंतर सिमिसिमइ असमत्थु मुणेवि कालु गमइ । १० गण काले पराइउ नेमि जिणु निसुणेवि धम्मु निम्विन्नमणु । संजायउ गयकुमारु सवणु घोरुग्गमहातवतावतणु । उज्जंतगिरिंदे समाहिपिउ सन्नासे मडयसेज्जाश थिउ । एत्थाउ' वियाणिवि तत्थ वणी गउ दिट्ठ थक्कु समभाव मुणी । सव्वंगु पसारेवि जिह अजिणु सहुँ भूमिण पंगुलु पावमणु । १५ घत्ता-गउ अयखीलएहिँ खीलेप्पिणु साहु वि तारिस वियण सहेप्पिणु । निच्चलमइ समाहि पावेप्पिणु गउ सुरलोयहाँ कालु करेप्पिणु ॥१॥ रिसि सणकुमारु वइरायजुउ बहुवाहिहिँ वाहिउ वरिससउ तहो रज्जु करंतो एक्कदिणे जत्थच्छइ तत्थ महाइयउ तहो तेएँ सयल वि पहयपहा ता विभिएहिँ संदेहहरु किं कारणु सामिय संगमहो १. १ पत्थाउ । होतउ चक्कवइ तिलोयथुउ । पर तो वि न दुप्परिणामु गउ । सोहम्मसुरिंदसहाभवणे । सुरु संगमनामु पराइयउ । संजाया तक्खणे देवसहा । परिपुच्छिउ देवहिँ कुलिसकरु । स सुतेउ दुदहरविसंगमहो। ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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