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________________ ४२८ ] सिरिचंदविरइयउ [ ४३. ४. ११पुण जाणेप्पिणु पुरिसु एह नउ नारि रवन्नी तेण जि नेहें बहिणि तेण सिरिमइ तहो दिन्नी । विप्प न होंति परंपराण पच्छा परियाणिय लज्जवि लोयहो कुसुमनयरु गय ते अवमाणिय सुणिवि धम्मु गुरुदत्तपाय पणवेवि दियंबर हुय वइरायवसेण वे वि बंधव कयसंवर । काले सयलागमपवीण होएवि महाइय महि विहरंता रायगेहु पुरु पुणु संप्राइय । भिक्खहे कयमासोववासु संभूउ पइट्ठउ पेक्खेप्पिणु वसुसम्म नयरमज्झम्मि पणट्ठउ । नासंतहां तहां बंभणहो अणमग्गे लग्गउ पेच्छिवि रोसें रिसिहि तणु हे तेय ग्गि विणिग्गउ पट्टणु दुव्वारेण तेण चउदिसहिँ पलित्तउ परियाणिवि वित्तंतु चित्तु तहिँ झत्ति पहुत्तउ। घत्ता--तेणुवसामिउ भाइ जलणु जलंतुल्हाविउ । मुणिमाहप्पु निएवि नठु विप्पु भयभा विउ ।।४।। गयकालि का वि काणणि थियाहँ वणदेवि ताहँ तववहुपियाहँ । सुविहूइपरयणिण निच्चमेव चक्केसरवेसें करइ सेव । तं पेक्खेवि कयकोऊहलेण संभूइम पत्थियतवफलेण । बद्धउ नियाणु संपन्नभोउ अागामे जम्म महु एउ होउ । इय भासेवि सन्नासें मरेवि हुउ पढमसग्गे सुरु जिणु सरेवि। ५ तत्तो चुउ इह भरहंतराले पंचालविसण संपय विसाले । कंपिल्लनयर संपयहु राउ महए विहे तो सो सूर्ण जाउ । नामेण पसिद्धउ बंभदत्तु बहुलक्खणलक्खिउ चारुगत्तु । । गुणनिहि बारहमउ चक्कवट्टि परमेसरु दुज्जणमइयवट्टि । वसुसम्मु वि संसारण भमेवि सूयारु हूउ तहो तणउ एवि । १० सो भोयणसंबंधेण तेण माराविउ रोसें निद्दएण। हुउ उतरु दीवंतरे रउद्दु परिभमिउ चउद्दिसु जहिँ समुदु । चक्कवइ करेवि पवंचु तेत्थु निउ निहउ तेण सुमरेवि अणत्थु । घत्ता–एउ मुणेवि नियाणु तिविहु वि दूरे विवज्जह । दुप्परिणामवसेण मा दुग्गइ अावज्जह ।। ५॥ १५ o . मायासल्लें हयबोहिलाह नामेण कुसुमदसणज्जियासि आयनह अज्जियवत्तनामि पुरि पुप्फयंतचूलाहिहाणु ४. १ रज्जवि । दुग्गंधवयण दुज्जणसणाह । हुय सायरदत्तो तणिय दासि । इह भारहवंसि मणोहिरामि । निवसइ नरिंदु गुणमणिनिहाणु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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