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________________ ( ३७ ) सूरदत्त द्वारा सब वृत्तान्त जानकर उसका सम्मान सहित कौशाम्बी प्रेषण । सूरदत्त का नागदत्त से दीक्षा-ग्रहण व स्वर्ग गमन ७. कषायोपशमन पर शूरमित्र कथा । पूर्व मालब में तलिया राष्ट्र विषय, प्रवरकच्छ नगर. सूरसेन नरेश, सूरदत्त सेठ व दो पुत्र सूरमित्र और सूरचन्द्र । दोनों भाइयों का सिंहलद्वीप गमन । ८. महारत्न की प्राप्ति । घर की ओर गमन । प्रत्येक की दूसरे भाई को मारकर रत्न लेने की इच्छा। घर के समीप वेत्रवती नदी के तीर पर दोनों भाइयों का रत्न के विषय में परस्पर स्पष्टीकरण । ६. कुत्सित रत्न जानकर नदी में फेंकना। मत्स्य द्वारा रत्न का भक्षण । माता का हर्ष व हाट से मत्स्य की खरीद । उसके पेट से रत्न-प्राप्ति । १०. उस रत्न से माता के हृदय में पुत्रों को मारने की भावना । माता द्वारा पुत्री को दिये जाने पर उसकी भाइयों को मारने की इच्छा। पुत्रों द्वारा भी रत्न की कहानी । सर्व सम्मति से रत्न का त्याग व व्रत-ग्रहण । ११. वयाबृत्य पर वासुदेव कथा। सोरठ राष्ट्र, द्वारवती नगरी, विष्णु नरेश, भ्राता बलराम। यिष्णु का एक व्रती साधु को व्यांधिग्रस्त देखकर वैद्य से परामर्श । .१२. रोग निवारण की व्यवस्था। अच्छा होने पर व व्यक्त रूप से उपकार न मानने पर वैद्य का रोष व मरकर रेवा-तट के वन में मर्कट का जन्म । मुनि-आगमन तथा वृक्ष की शाखा के पतन से क्षति । १३. वानरों द्वारा शाखा को दूरकर मुनि का उपचार । वानर मरकर देव हुआ और मुनि को केवलज्ञान । वानरदेव द्वारा प्राकर मुनि की वन्दना । १४. वसुदेव को वैयावृत्य के फलस्वरूप भावी तीर्थकरत्व। लघुत्व का पाख्यान । टक्क देश, बलदेवपुर, बलभद्र राजा, धनदत्त सेठ, व धनवती पुत्री, जिसकी पूर्णभद्र वणिक् द्वारा अपने पुत्र पूर्णचन्द्र हेतु याचना । धन लेकर कन्या-दान । विवाह के पश्चात् ही कन्या की मृत्यु । समस्त धन से सुवर्णमाल बनवाकर धनदत्त द्वारा मृतक को अर्पण । पूर्णभद्र द्वारा उसकी याचना। १५. मृतक के संसर्ग दोष के कारण किसी ने उस माला को मूल्य देकर नहीं खरीदा। दुर्जन संसर्ग से सुजन भी अपूज्य । दुर्जन संसर्ग पर कल्लालमित्र कथा । वत्स जनपद, कौशाम्बी पुरी, धनपाल राजा। पूर्णभद्र रसवणिक् (मदिरा व्यापारी) की पुत्री वसुमित्रा का विवाह । अपने मित्र राजपुरोहित शिवभूति का निमंत्रण, किन्तु शूद्रान-निषेध के कारण अस्वीकृति । १६. पूर्णभद्र द्वारा वनगोष्ठी में दुग्ध-शर्करा पान का प्रस्ताव । पुरोहित द्वारा स्वीकृति । लोक द्वारा शंका व मद्यपान का आरोप । वमन कराने पर दूध-शक्कर में भी मद्य की गंध व राजा द्वारा दंश । दुर्जन-संसर्ग का दोष । ८८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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