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________________ ४०४ ] सिरिचंदविरइयउ [ ४१. ११. १ ११ ताहँ अणंतविजउ पहिलारउ तासु पासि सासयसुहयारउ । धम्मु सुणेवि तेण सायार लइयइँ वयइँ कुगइविणिवार। एक्कहिँ वासरि हरि रक्खंतउ दुद्दिणम्मि सो तरुतलि सुत्तउ । खलतुरएण तेण तहिँ एप्पिणु मारिउ दंतहिँ गला गहेप्पिणु । देउ पंचपल्लाउ सुहम्म संभूय उ सग्गे सोहम्म। तत्तो चुउ चंपहे वणिउत्तहो हुउ भवदेउ पुत्तु भवदत्तहो । तेत्थु जि नंदघोसनामाणहो आयउ पंचमसग्गविमाणहो । नागदत्तु जिणदत्तहो भज्जन जायउ पोमण सुउ निरवज्जन । सयलकलाविन्नाणसमिद्धउ नामें सो जिणदेउ पसिद्धउ । दोहँ वि ताहँ पुव्वनेहायउ वणिउत्तहँ मित्तत्तणु जायउ। १० घत्ता--कालें जे मेरुप्पहु मुणिनाहु नमंसिवि । जिणदिक्खन जिणदेउ थिउ अप्पाणउ तूसिवि ।।११।। १२ सव्वसत्थनिम्माणउ जायउ संघवइ । भवदेउ वि भवनोहं हुउ तहु पासे जइ ।। संजमभेउ वियाणिवि दूरुज्झियविसउ । पुच्छेवि गुरु विहरंतउ गउ कलिंगविसउ ।। नंदिगामसामीवण काणणि धीरमइ । अइरावइनइतीरण निच्च' निबद्धरइ ।। घडयो' उवरि परिट्ठिउ आदावणु करइ । चिरभवभाविउ' लोहकसाउ न वीसरइ ।। एक्कहिँ वासरि पूरें निवडिउ नइहि तडु । दिठ्ठ सुवन्नहो रयणहिँ भरियउ तेण घडु ।। आदावणथडयो तलि आर्णवि निक्खिणिउ । अच्छइ निच्च नियच्छइ जिह कोइ वि धणिउ ।। तासु परिदिउ उप्परि सिलहि निरिक्खियउ । थेरीरूवु करेप्पिणु सो जिणदिक्खियउ ।। १२. १ निच्चं पि। २ घडयहो तहो। ३ चिरणियभवभाविउ । “४ निवडिउ ता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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