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________________ ४०२ सिरिचंदविरइयउ [ ४१. ७. १ सुणेवि इणं कियदुट्ठभएण पउत्तु पुणो वि हु सो अभएण । पयासहि जासु न एक्कु वि तुल्लु अउब्बउ केरिसु तुज्झ बइल्लु । पयंपइ लुद्ध पसाउ करेवि निएह मईयउ मंदिरु एवि । सविभउ मंतिपुरोहसहाउ तो गउ तासु निहेलणु राउ । घरंतरि जक्ख भुयंग विहंग मयारि मयंग तुरंग कुरंग । पहूइ असेसहँ जीवहँ जुम्म सुवन्नसुरन्नविणिम्मिय रम्म । पईसिवि दाविय तेण नृवस्स समंतिहिँ चोज्जुविहिन्नमणस्स । निएप्पिणु तत्थ सुवन्नबइल्लु महामणिमंडिउ चारु रुइल्लु । महारए एरिसु गोविसु नत्थि पयंपिवि एउ खलंघि व हत्थि । निविठ्ठ नराहिउ सीसु धुणेवि समप्पहि रायो एम भणेवि। १० तो तो नागवसू विसालु भरेवि हिरन हो ढोइउ थालु । समप्पयमाणहो अंगुलियाउ थियाउ हवेवि अपंगुलियाउ । घत्ता-ता फडहत्थय नामु तहाँ लुद्धवणिहं देप्पिणु । गउ नियभवणहो भूमिवइ ढोयणउ मुएप्पिणु ।।७।। इयरो वि गरुयलोहाहिहउ वाणिज्जो वोहित्थेण गउ । पइसेप्पिणु तामलित्तिणयरु सोवन्नभूमि पुणु कलसउरु । सिंघलदीवाइय दीवसया हिंडतहो बारह बरिस गया। चउ कोडिउ कणयहँ पावियउ बहुदुक्खकिलेसहिँ भावियउ' । मलमलिणवेसु जीवंतसउ पच्छायउ सो सिंधुवविसउ । जलजाणो केम वि णासु हुउ तहिँ सिंधुसमुद्दो मज्झि मुउ । परिपालियनियनिहाणघडउ संजायउ फणि दप्पुब्भुडउ । जो दव्वसमीवइ संचरइ तहु सम्मुहु धावइ फुक्करइ । एक्कहिँ दिणि डसहुँ पधाइयउ विणयासुयदत्तें घाइयउ। पत्ता-चोत्थियहिँ खडहडपत्थडन पुहइहे दुक्खें जूरउ । जालवत्तनामा नरण उप्पन्नउ नारउ ।।८।। घरि जेण सप्पु सो गरुडदत्तु ८. १ पावियउ । मारिउ सदप्पु । तहो तणउ पुत्तु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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