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________________ ३६६ ] सिरिचंदविरइयउ [ ४०. १६. ३पुरि पयडु भद्दु नामेण संडु घरि घरि मग्गंतउ तारपिंडु । एक्कहिँ दिणि दियमंदिरि पइठ्ठ पावाण सोमसम्मान दिठ्ठ । मारिवि छलेण चडुयम्मजुत्तु पोइउ तहो सिंगि सवत्तिपुत्तु । सो सिंगासिउ सिसु पेच्छिऊण परिहरिउ जणेण दुगुंछिऊण । तो दिवसहो लग्गिवि खीणगत्तु पावइ न कि पि कत्थई भतु । ता तहिँ कासु वि सुद्धिहे निमित्तु लोएण मिलेप्पिणु दिव्वु तत्तु । तं पेक्खिवि वसहहो हूय बुद्धि लइ हउँ मि करमि दुज्जसहो सुद्धि । इय चिंतिऊण सिहिसरिसु लोहु वयणेण लइउ रंजिउ जणोहु । १० पावियपसंसु निद्दोसु होवि | थिउ पुव्वविहाणे पुरि पुणो वि । निद्दोसहो दोसु विइन्न तासु किं जुज्जइ एरिसु पुरयणासु । जिणयत्तें वुत्तउ किउ असाहु प्रायन्नहि अक्खमि हउँ वि साहु । घत्ता-गंगानइहे समीर्व सुइसत्थत्थवियाणउ । विस्सभूइ नामेण होतउ तवसि पहाणउ ॥१६॥ १५ ५ एक्कहिँ दिणि गड्डहिँ पडिउ तेण करिकलहु दिठ्ठ हिंडंतएण । आणिवि वणाउ जूहेण चत्तु पारिपालिउ आसमि जेम पुत्तु । सुहलक्खणु काले भद्दजाइ हुउ गंधहत्थि सुरहत्थि नाइ। नउ अत्थि अवरु तारिसु धराण पायन्निवि कन्नपरंपराए। मग्गाविउ सेणियराणएण पेसिउ तवसेण सयाणएण। बंधणु असहंतु विमुक्कराउ तोडेवि तिन्नि वाराउ आउ । पुणरवि पट्ठाविउ कुविउ नाउ विणिवाइउ तवसि महाणुभाउ । जायउ मयंधु सच्छंदवासु किं जुज्जइ संजय एउ तासु । जीवाविउ जेण मरंतु संतु किह किज्जइ सुयणहो तासु अंतु । घत्ता–प्रायन्नेप्पिणु एउ विहसिवि भणिउ मुणिदें । सावय तेण खलेण किय उ अजुत्तु करिदें ।।१७।। १८ सुणु वणिवर गयउरि विस्ससेणु कोऊहलेण पुरपच्छिमेण कालेण फलिउ तामेक्कु तम्मि फणिवयणहो वियलिउ गरलबिंदु पहु अत्थि अराइविहंगसेणु । काराविउ चूयारामु तेण । अहि लेवि चिल्ह थिय अंबयम्मि । निवडिउ फलम्मि एक्कम्मि बिंदु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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