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३५. १७. १२ ]
भगवेण दिट्ठ निउ नियनिवासु एक्कहिँ दिणि तेण पउत्तु पुत्त लइ एहु जाहुँ तुह लेवि देभि ते वि हिदि पय नवेवि
दुग्गंधि दुसंचरि दुप्पवेसि वयणेण तासु भाउ परिहरेवि afs सिक्कत्थु दोघेण जाम मागेह गेह तं सुणिवि तेण कोतुहुँ विणिवारहि किं निमित्तु हउँ चारुदत्तु नामेण वणिउ पुरिसेण भणिउ हा वंचित्रो सि पाविट्ठ एहु सुहि भगउ धुत्तु
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कहको सु
घत्ता - तहिँ डोंगरहो कराडिहे सिद्धरसहो भरिउ । विउ बिलु तो वणें वणिसुउ पइसरिउ ।।१५।।
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प्रत्थक्ख दुम्मण मलिणवेसु एत्थाउ मित्त भगवेण दिट्ठ बंधेवि रज्जु इह सिक्कएण छुडु दिन्न रसु तुंबउ भरेवि तलि पडिउ रसेण सहड्डु चम्मु जिह हउँ तिह वर नरसयाइँ हड्डेण निरंतर जाहँ एहु हो एव तु परिवाडि आय वणितणउ भणइ प्राइउ अणत्थु जइ देमि न रसु तो उवरि थक्कु
सम्माणिउथिउ तहिँ साहिलासु । एत्थच्छइ वणि रसु भत्तिजुत्त । महो दालिदु वि णासु नेमि । गउ भगउ गहणगिरितलु लएवि ।
अंधारे नर नं कियकिलेसि । जमवण व कूर्व पईसरेवि । रसु लेइ समुट्ठि सदु ताम । पुच्छिज्जइ दूरुज्भिय भएन । हउँ माणुसु तुहुँ को तेण वुत्तु । हुँ एत्थ भगवेण पणिउ । माहुँ हुँ एत्थ पवेसि सि । सुहउँ उज्जेणि वाणिउत्तु ।
घत्ता-- - भरेवि भंडु वाणिज्जहे रु वढवेपणु हु
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कंचणदीव गउ | वोहित्थखउ || १६ |
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हिंडवि सुहि देसेण देसु । सम्माणिवि दव्वोवाउ सिट्ठ । पइसारिउ सिद्धरसहो कएण । ता गउ खलु सिक्कउ कत्तरेवि । खद्धउ को वारण पुव्वकम्मु । इह घल्लियाइँ पल हो गयाइँ । रसपूरिउ अच्छइ कोडिवेहु |
घत्ता- - देहि भरेप्पिणु तुंबउ जइ सज्जण रसहो । इहु तो एत्थ बंधव वइवसहो || १७ ||
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इनासहि केमवि कहिमि भाय । कहिँ नासमि हि नीसरमि एत्थु । न वियाणहुँ काइँ विकरइ वक्कु । १०
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