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________________ ३३२ ] वीयसो सो संजयंतु पेक्खेवि कुवि णाणेवि एत्थु तं सहिवि समुप्पाएवि नाणु ग्रह संजयंतु सीहउरराउ चिरवइरें तेण विमुक्कदेहु इय जाणिवि मुच्चइ वइरभाउ सिरिदामु इहाउ जयंतु जाउ होतो सि सि सुहि पुन्नयंदु सिरिचंद विरइय उ Jain Education International २५ मुणि डिमाजोएँ तर तवंतु । निक्खित्तु हु कि वहु णत्थु । गउ मुणि परमेसरु मोक्खठाणु । सिरिभूइ एहु दुन्नयसहाउ । खब्भालिउ मारिउ एण एहु । जम्मेवि न दीसइ जेण ताउ । पुणु तुहुँ सनिया भुयंगराउ । सा रामयत्त हउँ लंतवेंदु | [ ३२. २५. १ घत्ता- - आयनेवि एउ धरणिदें खमभाउ किउ । हक्कारेवि सव्वखेय रचक्कु परिट्ठविउ || २५॥ २६ जो संजयंतपडिमा पुरउ । हिरिमंतधराधरि भत्तिनिरउ साहेसइ विज्जउ तासु सिद्धि नर सलवियो कुलि अविज्ज इ भणिवि मुवि दुन्नयसहाउ एतहिँ उक्ख लंतवेंदु महुरहे प्रणतवीरियनिवासु कुलनंदणु नंदणु जाउ मेरु अनियप्पहा मंदरु कुमारु ते विन्नि वि भायर विमलनाह केवलि होएप्पिणु कम्मचत्त सिरिभूइ व परधणहरणचित्तु किय निच्छण अन्न हो न सिद्धि । श्रीसंतइ होसइ सिद्धविज्ज | गउ निययनिवासहो नायराउ । एत्थायउ नावइ पुन्निमिदु । घणमाल हे देवि गुणनिवासु । थिरु कल्लाणं गउ नाइ मेरु । धरणेंदु होवि हुउ नाइँ मारु । गणहर पर पाविवि मइसणाह । परमेसर सासयसोक्खु पत्त । अणुवइ दुक्ख अवरु वि विचित्तु । घत्ता- - जाणेपिणु एउ सिरिचंदुज्जलकित्तिहरु । वजह परदव्वु जें फिट्टइ संसाररु || २६ ॥ विविहरसविसाले पेयकोऊहलाले । ललियवरणमाले प्रत्थसंदोहसाले ॥ भुवणविदिनामे सव्वदोसोवसामे । इह खलु कहकोसे सुंदरे दिन्नतोसे || मुणिसिरिचंद उत्ते सुविचित्ते णंतपयदसंजुत्ते । परधणहरणनिसेहो एसो बत्तीसमो संधी ॥ || संधि ३२ ।। For Private & Personal Use Only ५ १० ५ १० www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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